पारो शैवालिनी की कविता : क्या यह अच्छा नहीं होता

।।क्या यह अच्छा नहीं होता।।
पारो शैवलिनी

क्या यह अच्छा नहीं होता
आजादी के इस
अमृत-महोत्सव पर
हर घर तिरंगा के साथ
हर घर एक रोजगार का
नारा भी देती सरकार?
अरे जनाब!
तिरंगा तो
हर देशवासियों के
दिलों में बसता है
उसे घर-घर फहरा कर
इतना सस्ता भी ना करो
क्योंकि,
देश में 75 साल बाद भी
इतनी गरीबी है साहब, कि–
एक बड़ी आबादी के पास
तिरंगा खरीदने की भी
नहीं है औकात।
इसका मतलब यह तो नहीं उसे अपने देश से प्यार नहीं।
क्या यह अच्छा नहीं होता
सरकार
कि, हर घर तिरंगा पहुंचाने का काम भी
उसी सिद्दत से किया जाता
जिस सिद्दत से
आप वोट मांगने
गरीबों के दरवाजे तक भी
पहुंच जाते हो
अगर ऐसा हो
तभी सार्थक होगा
आजादी का यह
अमृत महोत्सव।

paro
पारो शैवलिनी कवि

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