नीक राजपूत की कविता : अंधश्रद्धा

अंधश्रद्धा

अंधश्रद्धा जिसके नाम के आगे भी अंध,
आता है उनमें में श्रद्धा कैसी आज हम,
21 मी सदी में जी रहे फिर भी कुछ लोग।
आज भी अंधश्रद्धा पर विश्वास, कर रहें,
और अनपढ़ नही बल्कि पढेलिखे लोग।
भी इसका शिकार, हो रहें है। किसी भी,
मुश्किल आने पर बुरी नज़र का दावा।
करतें है। या किसी तांत्रिक बाबा का।
साहारा लेते है। जो झाड़फूक, लगा कर,
हमारी मुश्किलो का हल निकाल देता है।
ये सब एक अंधविश्वास, है हमारा हमारी,
मूर्खता है। जिसे हम खुद अपने दिमाग,
में जन्म देतें है। क्योंकि वहम की या।
अंधश्रद्धा, की नहीं कोई दवा हमारी।
ज़िन्दगी में आये मुश्किलें, तो करे सब,
ईश्वर से दुआ, क्योंकि ये सारी सृष्टि है।
ईश्वर ने बनाई उनकी दी हुई अनमोल,
शक्तिया हम सबमें है समाई अगर हम।
चाहे तो पूरे ब्रम्हाण्ड को नियंत्रित कर,
सकतेंहै लेकीन ये बात कोई सोच नहीं।
रहा और हम चले जा रहें है अंधश्रद्धा,
के मार्ग पर अंध बन कर और हमारे,
दिमाग को सौप देतें है किसी तांत्रिकों।
के हाथ मे जो हमें बाधा के धागें में,
बांध कर हमें भूत प्रेत के नाम पर वो।
अपने जाल में फसा रहे हैं और हम,
मजबूर हो कर उन्हीं की बातों पर,
ख़ुदका भरोसा तोड़ कr विश्वास करने।
लागते है, और अपनी श्रद्धा, को हम,
अंधश्रद्धा, के मार्ग पर ले जाते है।

नीक राजपूत, गुजरात

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