गोपाल नेवार की कविता : “फूल की सादगी”

“फूल की सादगी”

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पौधों की शान हूँ मैं
कली से फूल में परिवर्तित होकर
बहारों में खुशबू बिखेरती हूँ मैं ।

सुन्दरता देखकर मेरी
बेरहमी से हर कोई
तोड़ ले जाता है मुझको ।

आदत से मजबूर हूँ मैं
उनकी दी ज़ख्मों को सहकर
खुशबू उन्हीं पर लुटाती हूँ मैं ।

यही कर्म, यही धर्म है मेरा
औरों को बाँटकर खुशी
गम सारे ले जाती हूँ मैं।

गोपाल नेवार, गणेश सलुवा

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