।।जनता।।
ध्रुवदेव मिश्र पाषाण
हर धरती का आकाश आंखों में
चहक में हर आकाश का संगीत
दूर-दराज तक आंखों की पहुंच
तुम्हारी कविता की
नाजुक नाजनीन दुनिया से अलग
एक चिड़िया यह भी
जिसके पांव कहीं नहीं पथराते
बार-बार उड़ान के बावजूद
जिसके पंख
हर उड़ान पर नए होते हैं।