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सड़कें हैं, सवार नहीं ….!!
बड़ी मारक है, वक्त की मार
हिंद में मचा यूं हाहाकार
सड़कें हैं, सवार नहीं
हरियाली है, गुलज़ार नहीं
बाजार है, खरीदार नहीं
गुस्सा है, इजहार नहीं
सोने वाले सो रहे
खटने वाले रो रहे
खुशनसीबों पर सिस्टम मेहरबान
बाकी भूखों को तो बस ज्ञान पर ज्ञान
जाने कब खत्म होगा नई सुबह का इंतजार
बड़ी मारक है वक्त की मार
-तारकेश कुमार ओझा
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