राजीव कुमार झा की कविता : वसंत

।।वसंत।।
राजीव कुमार झा

इतने दिनों के बाद
अब याद आता
वह पल इसके बाद
रोज रात भर सताता
चांद की नगरी में
कोई भूला भटका
जब चला जाता
यह सितारों का आहता
अरी सुंदरी
सागर में उठता
ज्वारभाटा
हिमालय का माथा
सागर
तुम्हें देखकर
तट पर आकर
गीत गाता
रंगबिरंगी किरणों से
सूरज धरती को
सजाता
पेड़ों पर आकर
मौसम बाजा बजाता
वसंत की धूप में
तुम्हें बाग बगीचों के
पास कोई
अंगड़ाइयां लेता
पाता

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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