।।नदी की उदासी।।
राजीव कुमार झा
सबकी ख्वाहिशों को
लेकर
आज मन में धूप भर
गयी
सुबह में नदी उदास
होकर चुप बहने लगी
उसकी ख्वाहिशों में
सबकी फिक्र
शामिल हो गयी
आकाश की धुंध
अब उसकी सतह पर
आकर तैरने लगी
शाम को चुप होकर
सूरज ने उसे कहा
तुम अब कहीं नहीं
ठहरना
सागर के पास आकर
रहना
तुम्हारी ख्वाहिशों से
यहां किसी का
कोई मतलब कहां रहा
सिर्फ आदमी
अपनी ख्वाहिशों में
बाकी बचा रहा