।।फूलों की रानी।।
राजीव कुमार झा
कभी प्यार की धूप में
आकर
नदी के किनारे
बाग बगीचों में चली
आना
रात भर दीवाना बना
चांद
तुम्हें सुबह देर तक
आकाश के
किसी कोने आकर
चुपचाप बैठा
तुम्हें ढूंढ़ता रहता
अंधेरे की
खामोशी में
गुमनाम बना
काफी पुराना शहर
प्यार के अनगिनत
किस्सों को सुनाता
यहां हर उम्र का आदमी
सालों भर
बदलते मौसम में
प्यार का पैगाम पाता
रंग-बिरंगे त्योहार
मनाता
जिंदगी के हर उम्र में
प्यार सबके चेहरे पर
होली के दिन
रंग जमाता
सचमुच प्यार में
जब जवानी का दिन
बीत जाता
तब बहारों का मौसम
सबके पास आता
तुम फूलों की रानी
बहारों की मलिका
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