।।झिलमिल।।
राजीव कुमार झा
बाजार में
इश्क के सारे रंग
बेनूर हो गये
सुबह में फूल
रोशनी से महकने
लगे
चांद की बांहों में
सितारों की रोशनी
कसमसाती रही
उस चुप्पी में
दुपहरी की धूप
नदी को याद
आने लगी
यह सब सुनकर
तुम हंसती
छुटतीं
कोयल कहां
अकेली कूकती
अरी प्रिया
तुम अक्सर पूछती
हम किसी दिन
फिर मिलेंगे
उस दिन सुबह
गमलों में
गुलाब के फूल
खिलेंगे
शाम में
नदी के किनारे
चलेंगे
घर लौटती राह में
सूरज की झिलमिल
किरण से
बातें करेंगे