।।डगरिया।।
राजीव कुमार झा
बीत गयी
सारी उमरिया
चलती रहती
हवा संग
तुम वही डगरिया
बालम संग भावे
यह नगरिया
धूप नदी में
डूबी गगरिया
आकाश में छाये
काली बदरिया
पिया निरमोहिया
नदी में गहरी
भंवर जलेबिया
पुरवईया के झोंको से
इस गहन रात में
अब संग तुम्हारे
चुप दिखते
जो ताल तलैया
सभी दिशा में
बिजली चमके
अरी सुंदरी
तुम भुलभूलैया
याद आती
जो तुम रोज सुनाती
कवि रसखान की
एक सवैया
गोकुल आएंगे
जब सांवरिया
ब्रज में बजे
कोई बंसुरिया
कोयल सबको
सुबह पहर में
पास बुलाए
राधा नदी किनारे
हंसकर आये
उसे कोई चैत का
गीत सुनाए!