।।बधाई।।
राजीव कुमार झा
यह हंसी
नये मौसम की धूप
आकाश में छिटकी
हवा घेरकर मन को
चारों तरफ फ़ैली
ढलती सांझ में
यहां आकर पेड़ की
डालियों पर धूप
थोड़ी देर बैठी
मानो जाने से पहले
हरियाली से उतरकर
कुछ पल नदी के बीच
बहती धार से
इसी पहर बातचीत
करती
तुम्हारे इंतज़ार में
संध्या
हर घर के आंगन से
गलियों में निकलती
तुम्हारी हंसी देखकर
अरी सुंदरी! रातरानी हम
महकती
चांद की रोशनी में बस
रातभर हवा किलोल
करती नहाई
तुम्हें प्यार की बधाई