राजीव कुमार झा की कविता : पतझड़

।।पतझड़।।
राजीव कुमार झा

कोई सबसे पुरानी
बात
कल सुबह जब याद
आई
सावन का भीगा आंगन
दोपहर की धूप में
सूखता चला गया
कोई पल मन के पास
पतझड़ के मौसम में
आकर
खामोश बैठ गया
हवा उसकी चुप्पी को
तोड़ती आयी
आज कोयल
सुबह में गीत गाती
तुमको उसी घर के
पिछवाड़े बुलाती
दोपहर में यहां धूल
उड़ती
नदी खेतों के किनारे
सावन की यादों को
मन में लिए बहती

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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