।।दुपहरी।।
राजीव कुमार झा
हम कभी
केवल अपने साथ
जब होते
कुछ पल ही सही
लेकिन
थोड़ी देर
गहरी नींद में सोते
सितारे सपनों का
बीज
गहन नींद में बोते
यहां आकर
शहर की
भागदौड़ से बाहर
हम अपनी
थकान जब खोते
याद आते
वसंत में गन्ने के
खेत
धूप में पकते
अनार के दाने
गेहूं की बालियां
पीले होते चने की
क्यारियां
इसी वक्त
सब सुबह हाथ में
लेते
चाय की गर्म प्यालियां
अब कभी बहतीं
मीठे जल से भरी
नदियां
चांदनी रातों में
महकती
अब रातरानी की
कलियां
धूप से भरी
दुपहरी में गलियां