मेरा लेखन पाठक के लिए : डॉ. लोक सेतिया

मेरा लेखन पाठक के लिए (बात सच की)

डॉ. लोक सेतिया : सोचते हैं तो सभी चाहते हैं दुनिया लोग अपने बेगाने समझें हमको। अजीब विडंबना है कोई किसी और को समझना ज़रूरी नहीं समझता दुनिया अपने गैर तो छोड़ो खुद ही से पहचान नहीं करते हम कभी। जबकि यही सबसे महत्वपूर्ण है अपने आपको ठीक से पहचानना। माना जाता है कि किसी लेखक को समझना जानना है तो उसको पढ़ना ज़रूरी है। लेकिन मुझे लगता ही नहीं भरोसा भी है कि मेरी रचनाओं को पढेंगे तो मुझसे नहीं खुद अपने आप से मिल सकेंगे। मेरी ग़ज़लें किताब के नाम की तरह से ही ज़िंदगी का फ़लसफ़ा क्या है विषय पर आधारित हैं। इन ग़ज़लों में ख़ुशी ग़म बारिश धूप छांव मुस्कुराहट आंसू पतझड़ बहार फूल कांटे प्यार विरह तमाम रंग जीवन के मिलेंगे जो सभी को अपनी ज़िंदगी की वास्तविकता से जुड़ता महसूस करवाते हैं।

कविताओं में आपको भीतरी मन की एहसासों की झलक दिखाई देगी। बेशक बाहर से कठोर लगते हैं कहीं अंदर से कोमलता छुपी रहती है। पढ़कर पलकें भीग जाएं तो समझना जो अंतर्मन में ज़िंदा है वही आप वास्तव में हैं।
ग़ज़ल कविता के बाद मेरी कहानियां आपको गुज़री हुए यादों से मिलवाएंगी। लेकिन अभी आपको देश समाज और दुनिया की असलियत को समझना बाकी है। व्यंग्य हास-परिहास की रचनाएं आपको सिर्फ गुदगुदाती नहीं बल्कि आपको जागरूक भी करती हैं। मेरा सारा साहित्य आपको अपने समाज को लेकर है जिसमें मैं डॉ. लोक सेतिया केवल सूत्रधार की भूमिका निभा रहा हूं।

डॉ. लोक सेतिया, विचारक

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