मंत्री जी का कुत्ता बनाम हवलदार शेर सिंह, श्रीराम पुकार शर्मा का हास्य व्यंग्यात्मक नाटक

श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता : (Source और force दोनों का ही आज समाज में महत्व है। इसके बिना कई विद्यासागर तबेले (खटाल) में गोबर बटोरते नज़र आते हैं, जबकि कई गोबर-गणेश इन्हीं के सहारे संसद की कुर्सी की शोभा में अभिवृद्धि करते नज़र आते हैं। Sourceful और forceful व्यक्ति की हर वस्तु तथा उसके हर सम्बन्धी सामाजिक तथा राष्ट्रीय उत्थान-प्रेरक हुआ करते हैं। भले ही वह वस्तु उनका अनुपयोगी गाड़ी-वाड़ी, घड़ी-छड़ी, लोटा-लंगोटा हो या फिर वह वस्तु उनका पालतू कुत्ता ही क्यों न हो? अगर किसी मंत्री का कुत्ता भी किसी व्यक्ति को काट खाए, तो उस साधारण जन का तो भाग्य ही खुल जाता है)
(हवलदार शेर सिंह यानि ‘लायन सिंह’ एक बड़ा ही बड़बोला हवलदार है। लेकिन एक दिन एक अपराधी कुत्ते का पीछा करते हुए उसके मालिक तक पहुँचना चाहता है, ताकि उसके मालिक को सख्त से सख्त सजा दे सके, परन्तु सौभाग्यवश वह कुत्ता तो एक मंत्री जी का निकला, फिर उस कुत्ते के मालिक (मंत्री जी) को गिरफ्तार करना तो दूर, बल्कि वह उस कुत्ते की प्रशंसा करता है और स्वयं अपने आप को भी उस कुत्ते से कटवाकर अपना promotion करवाना चाहता है)

पात्र-परिचय
हवलदार शेर सिंह: 30 वर्षीय, स्वस्थ शरीर, रोबदार चेहरा, पुलिस की वेश-भूषा।
बैजू: 50 वर्षीय, दुर्बल, ग्रामीण वेश-भूषा।
सरजू: 45 वर्षीय, साधारण वेश-भूषा।
मनोहर: 40 वर्षीय, नगरीय वेश-भूषा।
गिरधारी: 50 वर्षीय, दुर्बल, साधारण वेश-भूषा।
बुद्धिराम सिंह: 45 वर्षीय, स्वस्थ शरीर, रोबदार व्यक्तित्व, नेता का वेश-भूषा।
घनश्याम: 50 वर्षीय, स्वस्थ शरीर, रोबदार व्यक्तित्व, अफसर का वेश-भूषा।
राजू: 25 वर्षीय, स्वस्थ शरीर, मस्तानी वेश-भूषा।

(व्यस्त बाज़ार का एक दृश्य। कई दुकानदार तथा फेरीवाले अपने-अपने सामान बेचते हुए तथा कुछ क्रेता उनसे सामान खरीदते हुए दिखाई देते हैं। बाज़ार में राहगीरों तथा साइकिलों-सवारों की आवा-जाही हो रही है। इतने में एक बड़ा ही रोबदार कुत्ते का प्रवेश । उसके गले में एक सुनहरा पट्टा भी है। वह कुत्ता राहगीरों पर भौंकने लगता है। लोगों में भगदड़ मच जाती है। कोई राहगीर किसी दुकान में गिरता है, कोई राहगीर किसी फेरीवाले से जा टकराता है। इसी क्रम में एक व्यक्ति ‘बैजू’ एक साईकिल सवार से जा टकराता है। साईकिल-सवार गिर पड़ता है और उसी के ऊपर बैजू भी जा गिरता है। इतने में ही वह कुत्ता बैजू के पैर को काट लेता है)

बैजू- (कराहते हुए) बचाओ-बचाओ ! मुझे कुत्ते ने काट लिया। कोई तो बचाओ।
(वह लड़खड़ाते हुए उठता है और एक पत्थर के टुकड़े से उस कुत्ते को मारता है। कुत्ता ‘काँय-काँय’ करता हुआ प्रस्थान करता है)
बैजू- (कराहते हुए) बाप रे बाप ! मुझे कुत्ते ने काट लिया। अब मेरा क्या होगा ? चौदह सूइयाँ लगवानी होगी। अरे दइया रे दइया ! अब मेरा क्या होगा ? अब तो मैं मर ही जाऊँगा।
सरजू (राही)- भैया ! तुम इतना दुखी क्यों होते हों? तुम्हें कुत्ते ने ही तो काटा है, कोई आदमी ने तो नहीं। कुत्ते का काटा तो सूई से ठीक हो भी जाता है, परन्तु आदमी का काटा तो कोई इलाज से भी ठीक नहीं हो पाता है और किसने कह दिया कि चौदह सूइयाँ लगवानी होती है, अब तो केवल तीन सूइयाँ ही काफी होती है।
मनोहर- किसने कहा कि तीन सूइयाँ लगवानी होती है ? तब तो तुम खाक जानते हो। अब तो केवल एक ही सूई लगवाना काफी है।

सरजू- लेकिन भाई ! उस एक सुई की कीमत तो चौदह सुइयों के बराबर होती है।
मनोहर- यह बात तुम ठीक कहते हो भाई। कुत्ते काटने की एक सूई कोई 3000 रुपयों में आती है और सरकारी अस्पताल में तो मुफ्त में ही मिलती है।
सरजू- लेकिन सरकारी अस्पताल में कुत्ते की सूइयाँ मिलती ही कहाँ है ? कुत्ते की सूइयों को सरकारी अस्पताल वाले बाहरी दवाखाने वालों को बेच देते हैं। फिर वे 3000 से 4000 रुपयों में लोगों को बेचते हैं।
बैजू- क्या कहा ? तीन-चार हज़ार रुपयों में ! हाय ! अब तो मैं मर ही जाऊँगा। इतने रूपये मैं कहाँ से लाऊँगा ? (कोसते हुए) बिजली गिर जाये उस पर, नानी मर जाये उसकी, दादी मर जाये उसकी। करम फूट जाये उस कुत्ते पालने वाले का। मुआ खुद ही मर जाय। (कराहता है)
सरजू- भैया ! इतना मत श्रापो। गलती कुत्ते ने की और मरेगी कुत्ते पालने वाले की नानी और दादी? यह भी कोई बात हुई?

मनोहर- हाँ भाई। यह तो सरासर गलत है। कुत्ते की करनी का दंड आदमी पर। नहीं…….नहीं…….कभी नहीं।
(एक रोबदार पुलिस हवलदार का प्रवेश। बड़ी-बड़ी मूँछें तथा हाथ में डंडा भाँजते हुए)
हवलदार- यहाँ पर तुम लोग भीड़ क्यों लगा रखे हों ? क्या बात है ? हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह के रहते इस इलाके में कोई हादसा हो जाये तो शेर सिंह, यानि लायन सिंह का अपमान है। और ऐसा अपमान शेर सिंह, यानि लायन सिंह को कतई मंजूर नहीं। (भीड़ से) चलो हटो यहाँ से। माजरा क्या है?
बैजू- हवलदार साहब।

शेर सिंह- (चीखते हुए) ख़बरदार। हवलदार साहब नहीं। हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह कहो। बोलो किसने तुम पर हमला किया है ? (घाव देख कर) अरे यह तो जान लेवा हमला है। आईoपीoसीo की धारा संख्या 302 पैनी नुकीली औजार से हत्या की कोशिश, आईoपीoसीo की धारा संख्या 356 भरे बाज़ार में सारे आम हत्या की कोशिश आईoपीoसीo के धारा संख्या 547 (रुक कर) हमलावर चाहे कोई भी हो, हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह के हाथों से अब वह नहीं बच सकता है। अब तो उसकी फाँसी निश्चित है, राष्ट्रपति भी उसकी फाँसी को नहीं टाल सकते हैं। यह हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह का अटल फैसला है।
बैजू- परन्तु हवलदार साहब।

शेर सिंह- खामोश ! मैं हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह हूँ। इसलिए हवलदार लायन सिंह बोलो।
बैजू- ठीक है। हवलदार लायन सिंह जी। मुझे तो अब मरना ही होगा। इतना कीमती इलाज मैं कहाँ से करवा पाउँगा?
शेर सिंह- हवलदार शेर सिंह के रहते तुम कैसे मर सकते हो? मरेगा, जरुर मरेगा। मरेगा वह कातिल। मरेगा ही नहीं, सरेआम बाज़ार में फाँसी पर चढ़ेगा। वह कातिल। बताओ। बताओ। वह कातिल कौन है?
बैजू- हवलदार शेर सिंह जी। मुझे तो एक कुत्ते ने काटा है। कातिल तो एक कुत्ता है।
शेर सिंह- (चौंक कर) क्या कहा? कातिल एक कुत्ता है?
बैजू- हाँ। हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह जी। क्या आप उस कातिल कुत्ते को भी फाँसी पर चढ़ाईएगा ?
शेर सिंह- (सोच कर) कोई बात नहीं। कोई बात नहीं। अब उस कुत्ते के मालिक को ही हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह फाँसी पर चढ़ाएगा। उसकी यह मजाल! कुत्ता पालता है। लेकिन कुत्ते की रखवाली नहीं कर सकता है। कुत्ते के द्वारा हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह के इलाके में वारदात करवाता है। क्या उसे शेर सिंह, यानि लायन सिंह का खौफ नहीं है? बताओ वह कुत्ता कौन-सा है?

सरजू- हवलदार साहब!
शेर सिंह- चुप! हवलदार शेर सिंह, यानि हवलदार लायन सिंह कहो।
सरजू- जी हुजूर! हवलदार शेर सिंह जी। वह कुत्ता तो भाग गया।
शेर सिंह- (क्रोध से) कायरों! तुमलोग एक कुत्ते को न पकड़ सके। कैसे आदमी हो तुमलोग? (डींगें हाँकते हुए) मैंने तो एक बार एक शेर को पकड़ा था, वह भी खाली हाथ। वह शेर इतनी दूर पर खड़ा था। वह मुझे घूर रहा था। मैं भी कोई कम न था, आखिर मेरा नाम भी तो शेर सिंह, यानि लायन सिंह है। मैंने भी उसे घूरा। वह शेर घबड़ा गया। फिर मैं उसकी ओर बढ़ा।
(उसके बताये हुए जगह पर वही कुत्ता आ खड़ा होता है। वह कुत्ते को ध्यान दिए बिना ही आगे बढ़ता ही जाता है)
सभी- (रोकते हुए) साहब ! ……. साहब!

शेर सिंह- चुप! (दर्शकों से) ठीक इसी तरह उस दिन मेरे साथी भी डरकर मुझे रोकने लगे थे। लेकिन मैं शेर सिंह, यानि लायन सिंह आगे बढ़ता ही गया…..बढ़ता ही गया। (कुत्ते की ओर आगे बढ़ता है) आगे बढ़ता ही गया (कुत्ते को अनदेखा कर) और फिर मैंने शेर की गर्दन में अपना हाथ ऐसे डाला। (कुत्ते की गर्दन में हाथ को डाल कर) फिर मैंने उसकी गर्दन को ऐसे दबाया (कुत्ता हल्की आवाज में ‘कूँ’ करता है) शेर की बोलती भी बंद हो गयी थी। वह भी कुत्ते की तरह किकियाने लगा था। फिर मैंने उसके गर्दन को ऐसे मरोड़ा। (कुत्ता जोर से भौंकता है, अचानक कुत्ते को देख कर डरते हुए) च् ……, च् ……, च् ……, मुझे मत काटना। प्यारे ……., दुलारे ….., कुत्ते जी!

(कुत्ता जोर से भौंकने लगता है, शेर सिंह उछल कर गिरता है, फिर उठ कर डरते और भागते हुए प्रस्थान करता है। लोग इधर-उधर भागने लगते हैं। उनमें से एक व्यक्ति उस कुत्ते को एक पत्थर के टुकड़े से मारता है, कुत्ता ‘काँय-काँय’ करता हुआ भागकर प्रस्थान करता है। तब शेर सिंह डरता हुआ प्रवेश करता है)
शेर सिंह- (डरते हुए) कु ….., कुत ….., कुत्ता ……., किधर गया?
मनोहर- (फुसफुसाते हुए) डरपोक कहीं का!
सरजू- (फुसफुसाते हुए) कायर कहीं का ! (पुकारते हुए) हवलदार साहब !
शेर सिंह- (काँपते हुए स्वर में) न….. हीं। शेर सिंह, लायन सिंह कहो।
मनोहर- हवलदार शेर सिंह जी। कुत्ता तो भाग गया।

शेर सिंह- (निडरता से) भाग गया। कोई बात नहीं। हम उस कुत्ते को ….., न ….., न ……, न ……। उस कुत्ते के मालिक को जमीन खोद कर भी निकालेंगे और उसे ही फाँसी पर लटकायेंगे।
सरजू- लेकिन हवलदार लायन सिंह जी। अब उस कुत्ते के मालिक को आप खोजिएगा कैसे?
शेर सिंह- मैं शेर सिंह, यानि लायन सिंह हूँ। और लायन सिंह का दिमाग ‘गूगल डाट कॉम’ की तरह है। उस दिमाग का प्रयोग कर उस कातिल कुत्ते का पीछा करते हए उसके मालिक को मैं दबोच लूँगा। तुम लोग भी मेरे साथ ही रहना।
सभी- हमलोग क्यों?
शेर सिंह- और गवाही कौन देगा ? सब मेरे साथ चलोगे, कोई भी भागेगा नहीं। और जो भागा उसको पकड़ कर इसी डंडा से भुरता बना दूँगा। समझे।

सभी- जी सर।
(कुत्ते का प्रवेश)
सरजू- हवलदार लायन सिंह जी। वह रहा कुत्ता। (कुत्ते का दूसरी ओर प्रस्थान)
शेर सिंह- (आदेशात्मक स्वर में) सब कोई चुपचाप उसके पीछे-पीछे चलो। (कुत्ते के पीछे सभी का प्रस्थान)
शेर सिंह- (बैजू से) तुम भी चलो।
बैजू- साहब।
शेर सिंह- नो साहब। हवलदार शेर सिंह…….हवलदार लायन सिंह बोलो।
बैजू- हवलदार शेर सिंह जी, मैं कैसे चलूँ। मुझे तो कुत्ते ने काट लिया है। मैं चल नहीं पा रहा हूँ।
शेर सिंह- (शब्द चबाते हुए) तुम्हें तो चलना ही पड़ेगा। नहीं तो मेरा केस पतला हो जायेगा। और शेर सिंह, यानि लायन सिंह किसी पतले या कमजोर केस को हाथ भी नहीं लगता है। चलो।

(शेर सिंह आगे-आगे और उसके पीछे-पीछे बैजू का प्रस्थान)
(मंच पर कुत्ते का प्रवेश और उसके पीछे सभी का प्रवेश)
मनोहर- वह रहा कुत्ता।
(कुत्ता आगे-आगे और उसके पीछे-पीछे सभी लोग तथा शेर सिंह और सबके पीछे बैजू का लँगड़ाता हुआ प्रस्थान)
(दृश्य परिवर्तन)
(मंच पर एक सभ्य व्यक्ति गिरधारी का प्रवेश। वह एक कुर्सी पर बैठा अख़बार पढ़ रहा है। उसके पीछे कुत्ते का प्रवेश। वह कुत्ता गिरधारी के पास जाकर छुपकर बैठ रहता है। सभी लोगों का प्रवेश)
सरजू- हवलदार शेर सिंह साहब। वह रहा कुत्ता।
शेर सिंह- सब चुप रहो। कुत्ते का मालिक यही है। कैसे निश्चिन्त हो कर अख़बार पढ़ रहा है। मैं अभी उसको मजा चखता हूँ।

(शेर सिंह उछल कर गिरधारी को दबोचता है। कुत्ता भाग जाता है। शेर सिंह गिरधारी को डंडे से मारने लगता है)
गिरधारी- मुझे क्यों मारते हैं, हवलदार साहब?
शेर सिंह- ख़बरदार ! मैं हवलदार शेर सिंह, यानि लायन सिंह हूँ।
गिरधारी- लेकिन मैंने क्या जुर्म किया है?
शेर सिंह- जुर्म! और पूछते हो कि जुर्म क्या किये हो? कुत्ते पालते हो। कुत्ते की रखवाली नहीं कर सकते हो।
गिरधारी- साहब।
शेर सिंह- चुप। ऊपर से बोलते हो। (मारता है) तुम्हारा कुत्ता भरे बजार में कितने लोगों को काटा है और तुम घर में आराम फरमा रहे हो। कुत्ते से वारदात कराने के जुर्म में मैं तुम्हें फाँसी पर लटकाऊँगा। चलो।

गिरधारी- लेकिन साहब।
शेर सिंह- साहब नहीं। हवलदार शेर सिंह, यानी लायन सिंह कहो।
गिरधारी- (रोते हुए ) हाँ शेर सिंह जी! लायन सिंह जी! बाघ सिंह जी! टाइगर सिंह जी! एक बार मेरी बात तो सुनिए। मैंने कोई कुत्ता नहीं पाला है। मेरा कोई कुत्ता भी नहीं है।
शेर सिंह- तो क्या वह कुत्ता तुम्हारा नहीं है?
गिरधारी- नहीं!
शेर सिंह- तो किसका है?
गिरधारी- मुझे नहीं मालूम किसका है।
शेर सिंह- तुमने पहले क्यों नहीं बताया?

गिरधारी- आपने पूछा ही कहाँ? मुझे कुछ भी कहने ही कहाँ दिया ? बस अपना डंडा भाँजने लगे।
शेर सिंह- (अफ़सोस) ठीक है, ठीक है। कभी-कभी शक के आधार पर भी हम किसी को मारते और गिरफ्तार भी करते हैं।
(कुत्ता भौंकता हुआ एक ओर से प्रवेश कर दूसरी ओर प्रस्थान करता है)
मनोहर- हवलदार शेर सिंह जी ! वह रहा कुत्ता। वह देखिये, वह उधर भागे जा रहा है।
शेर सिंह- (आदेशात्मक स्वर में) चलो ! कुत्ते का पीछा करो।
(कुत्ते के पीछे सभी का प्रस्थान)

गिरधारी- यह हवलदार है कि कसाई? बेवजह मुझे इतना मारा कि मेरा पूरा बदन ही टूट रहा है। इस हवलदार के पूरे बदन में कोढ़ फूट जाये। (कराहता हुआ प्रस्थान)
(कुत्ते का प्रवेश, उसके पीछे-पीछे अन्य सभी लोगों का प्रवेश)
शेर सिंह- वह रहा कुत्ता। पीछा करो।
(कुत्ता भौंकते हुए दूसरी ओर निकल जाता है। उसी के पीछे सभी लोग भी दूसरी ओर निकल जाते हैं)
(दृश्य परिवर्तन)
(मंत्री बुद्धिराम जी का प्रवेश। सफ़ेद कुर्ता और पैजामा, माथे पर गाँधी टोपी। उसके साथ एक अधिकारी घनश्याम, सभ्य रूप में तथा एक मस्तान के रूप में राजू का प्रवेश)

बुद्धिराम- मेरे प्यारे बहनों और भाइयों तथा सज्जनों! आप लोगों से मिलने के लिए हम यानि आपका प्रिय नेता बुद्धिराम शरण सिंह पूरे पाँच वर्षों के बाद आया हूँ। आपको याद होगा कि मैं आपके शहर में जहाँ-तहाँ कई बड़ा-बड़ा गड्ढा बनवा दिया हूँ, जिसमें आप अपने विरोधियों को धकेल सकें।
दोनों- साथियों हाथ ताली!
बुद्धिराम- आपको यह भी याद होगा कि हम आपकी सुरक्षा के लिए कई काबिल पुलिस की व्यवस्था भी करवा दिया हूँ। ताकि आप निश्चिन्त से सोते रहिए।
दोनों- साथियों हाथ ताली!

बुद्धिराम- आपको यह भी ख्याल होगा कि आप लोगों के मुहल्ले निकट ही हमने एक श्मशान घाट का भी निर्माण किया हूँ, ताकि आपको अपनी अर्थियों को ज्यादा देर तक कंधा न देना पड़े।
दोनों- साथियों। हाथ ताली!
बुद्धिराम- इसीलिए हम कहता हूँ कि आप लोग हमरे चुनाव चिन्ह उल्लू को मत भूल जाइएगा। हम आप लोगों को पिछले पाँच वर्षों से लगातार उल्लू बनाते आया हूँ और अगले पाँच वर्ष फिर से उल्लू बनने के लिए हमरा चुनाव चिन्ह उल्लू का बटन दबाकर हमरे को ही फिर से अपना मंत्री बनाइएगा। धन्यवाद।
दोनों- जब तक सूरज चाँद रहेगा। मंत्री बुद्धिराम जी का नाम रहेगा।
(मंत्री बुद्धिराम कुर्सी पर जाकर बैठता है। उसके दोनों ओर राजू तथा घनश्याम खड़े होते हैं)

बुद्धिराम- आज के पार्टी सम्मलेन में दिए गए हमरे भाषण का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ेगा।
राजू- जी हुज़ूर। आपने तो विरोधियों की बोलती ही बंद कर दी।
बुद्धिराम- विरोधी दल के नेता हमरा पर पाँच सौ करोड़ रूपये घोटाले का आरोप लगा रहे थे।
घनश्याम- उसे तो आपने दस लाख रूपये दिए थे।
बुद्धिराम- अरे तुम्हे नहीं पता। उसका पेट काफी बड़ा है। एक करोड़ रूपये की वह माँग कर रहा था। नहीं दिया, इसीलिए हमरा पर घोटाले का आरोप लगा रहा है। सब के सब भ्रष्ट हैं! सबको पैसा चाहिए।
(तभी कुत्ते का प्रवेश। कुत्ता बुद्धिराम के पास आकर बैठ जाता है)

बुद्धिराम- लो यह भी आ गया। पता नहीं कहाँ-कहाँ हमरा जैसा ही घूमता रहता है। (सहलाते हुए) लगता है कि किसी ने इसे मारा है। किसकी मजाल हो गई, जो हमरे कुत्ते को मारे। फ़ौरन पता लगावो।
राजू- मैं देखता हूँ कि कुत्ते जी को किसने मारा है?
(सभी लोगों का प्रवेश)
सरजू- हवलदार शेर सिंह जी! वह रहा कुत्ता। और वह रहा कुत्ते का मालिक। चलिए और उसको पकड़ लीजिए और उसको फाँसी पर लटका दीजिए।
(शेर सिंह का प्रवेश। वह बड़े ही शान के साथ बुद्धिराम को पकड़ने के लिए आगे बढ़ता है। परन्तु मंत्री के रूप में बुद्धिराम जी को देखते ही भयभीत होकर वापस लौटे हुए)

शेर सिंह- अरे बाप रे बाप! ये तो मंत्री साहब बुद्धिराम शरण सिंह जी हैं। (लोगों के पीछे छुपने की कोशिश करता है)
राजू- (सरजू से) अब! इधर तो आ। क्या कहा? मंत्री जी के कुत्ते को पकड़ेगा? मंत्री जी को फाँसी पर लटकायेगा। कौन है बे तू! (सरजू को मारता है)
बुद्धिराम- राजू ठहरो! (लोगों से) क्या बात है? तुम लोग यहाँ क्यों आये हो?
मनोहर- मंत्री साहब! हवलदार शेर सिंह हमें यहाँ लेकर आये हैं।
बुद्धिराम- क्या? हवलदार तुम्हें लेकर आया है। कहाँ है हवलदार? (पुकारते हुए) हवलदार शेर सिंह!
शेर सिंह- (प्रगट होकर) जी। जी श्रीमान जी ! हवलदार शेर सिंह रिपोर्टिंग सर!

बुद्धिराम- क्या बात है रे! हवलदार शेर सिंह?
शेर सिंह- कुछ भी नहीं श्रीमान!
बुद्धिराम- इन लोगों का कहना है कि इन्हें तुम अपने साथ लेकर आये हो।
शेर सिंह- मैं……., मैं, नहीं श्रीमान जी! मैं नहीं। (डरते हुए और लोगों को इशारे से डाँटते हुए)
मनोहर- क्या हवलदार साहब जी। आपने ही तो कहा था कि इस कातिल कुत्ते को आप पकड़ेंगे और इस कुत्ते के मालिक को आप भरे बाज़ार में सरेआम फाँसी पर चढ़ाएँगे।
(कुत्ता भौंकता है, शेर सिंह डरता है)

बुद्धिराम- क्यों रे हवलदार? तू हमरे कुत्ते को पकड़ेगा? तू हमरे को भरे बाज़ार में फाँसी पर लटकायेगा? तेरी इतनी मजाल!
शेर सिंह- नो सर। नो सर! (लोगों से) बदमाश! पाजी कहीं के! भागो यहाँ से! नहीं तो हर एक को हत्या के मामले में 10-10 साल के लिए जेल में चक्की पिसवाऊँगा। (कुत्ते की ओर इशारा करके) यह कितना शांत और प्यारा ‘श्री कुत्ता जी, है। जी चाहता है कि इसका मुँह चूम लूँ! (आगे बढ़ता है, कुत्ता जोर से भौंकता है। शेर सिंह गिर पड़ता है)
बुद्धिराम- (कुत्ते से) राबर्ट चुप! (कुत्ता शांत हो जाता है) इसको कुत्ता मत कहो। कुत्ता कहने वालों को यह काट खाता है। समझे।
शेर सिंह- सॉरी सर!

बुद्धिराम- राबर्ट तुम्हें किसने मारा है ?
कुत्ता- (शेर सिंह की ओर इशारा कर के) भौं ……., भौं ………।
शेर सिंह- नहीं सर ! मैंने नहीं मारा है इस कुत्ते को। (कुत्ता भौंकता है) नहीं, श्रीमान कुत्ता जी ! आप कितने अच्छे हैं। आप शांत हो जाइए।
मनोहर- लेकिन हवलदार साहब ! आप तो इसे पकड़ने ………….।
शेर सिंह- खामोश!
बैजू- लेकिन इसने तो कई लोगों को काटा है।

शेर सिंह- (लोगों से) चुप ! फिर बोलते हो। (बुद्धिराम से) नहीं सर! नहीं सर! यह तो बड़ा ही प्यारा है, बड़ा ही दुलारा है और कितना अच्छा कुत ……. नहीं…. नहीं। कितने अच्छे साथी हैं। आदमी हैं। (लोगों से) और किसने कहा कि इसने किसी को काटा है? देखते नहीं आदमी की तरह कितने प्यारे, कितना सुशील और कितने शांत बैठे हैं। जल्दी भागो यहाँ से, नहीं तो मंत्री जी के श्री रोबर्ट जी पर दोष लगाने के आरोप में तुम सबको 10-10 साल के लिए जेल में डाल दूँगा। बदमाश कहीं के ! भागो यहाँ से। खुद राह चलना नहीं जानते और एक भद्र प्राणी पर काटने का आरोप लगाते हो। नाच न आवे, आँगन टेढ़ा! भागो यहाँ से।
(बैजू को छोड़ कर सभी का प्रस्थान)

शेर सिंह- और तुमको क्या हैलीकॉप्टर से भेजना होगा? तुम भी भागो यहाँ से।
बैजू- (कराहते हुए बुद्धिराम से) साहब! साहब! यह देखिए आपके रोबर्ट जी ने मुझको काट लिया है।
शेर सिंह- तो क्या हुआ। रोबर्ट जी ने ही तो काटा है। कोई शेर या मगरमच्छ ने तो नहीं। अरे धन्यवाद दो, इस रोबर्ट जी को जिन्होंने तुम पर दया दिखाते हुए तुम्हारी जान बख्श दी।
बैजू- लेकिन साहब। मैं तो गरीब आदमी हूँ, साहब! इतना महँगा इलाज मैं कहाँ से करवा पाउँगा? साहब मुझ पर दया कीजिए साहब। मेर छोटे-छोटे बाल-बच्चे हैं। साहब!
शेर सिंह- तुम पागल हो क्या? भागो यहाँ से। नहीं तो 10 साल के लिए भीतर कर दूँगा, तब तुम्हारे बाल-बच्चे सड़क पर भीख माँगते नजर आयेंगे।
(शेर सिंह बैजू को घसीट कर बाहर करने लगता है)

बुद्धिराम- (शेर सिंह से) ठहरो। (बैजू से) इधर आओ। हम एक चुटका लिखे देता हूँ। (एक कागज पर लिख कर देते हुए) इ लो। सरकारी अस्पताल में चल जाओ, डॉक्टर को यह चुटका दे देना। वह मुफ्त में तुमरा इलाज कर देगा। अब जाओ। (बैजू कागज लेकर जाने लगता है, तब कुछ सोच कर) ठहरो ! (घनश्याम से) घनश्याम !
घनश्याम- जी सर।
बुद्धिराम- तुमरे डिपार्टमेंट में एक चपरासी की जगह खाली है न?
घनश्याम- जी सर।
बुद्धिराम- तो ठीक है। (बैजू से) कल तुम इसके दफ्तर में चल जाना। यह तुमको सरकारी नौकरी पर रख लेगा। अब तो खुश हो न। जाओ।
बैजू- (बुद्धिराम के पैर पकड़ कर) साहब ! साहब, आप कितने दयालु हैं। आपका उपकार मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँगा। मेरा पूरा परिवार ही आपको जीवन भर दुआएँ देगा। जुग-जुग जियो साहब। श्री बुद्धिराम जी! जिंदाबाद।

बुद्धिराम- ठीक है। जाओ।
(बैजू प्रस्थान करता है। शेर सिंह कुत्ते के पास जा कर उसे पुचकारते और दुलारते हुए)
शेर सिंह- (कुत्ते से) ले ……., ले ……., आ ……., आ ……., काट ……., काट ……., (अपने पैर को कुत्ते के पास करते हुए) ले ……., आ ……., काट ……., काट ……., काट ……., (सभी आश्चर्यचकित) राबर्ट जी…….! राबर्ट जी ! आप मुझे भी एक बार काटिए ! काटिए न ……. !
बुद्धिराम- यह सब तुम का करता हो ? राबर्ट को तंग मत करो। राबर्ट तुमको काट लेगा।
शेर सिंह- सर ! यही तो मैं भी चाहता हूँ कि राबर्ट मुझे भी काट लेवें। राबर्ट जी ! मुझको भी काटिए न।
बुद्धिराम- आखिर हमरे राबर्ट से तुम अपने आप को क्यों कटवाना चाहते हो?
शेर सिंह- सर ! वह मैं बाद में बताऊँगा। पहले मुझे राबर्ट जी से कटवा लेने दीजिए। राबर्ट जी ! मुझको काटिए …. काटिए ……., काटिए ……., न।

बुद्धिराम- लेकिन तुम पहले हमको यह बात बताओ। तब मेरा राबर्ट तुम्हें काटेगा।
शेर सिंह- (दुखी हो कर) सर। आज सात वर्षों से मैं हवलदार का हवलदार ही बना हुआ हूँ। आखिर मैं कब तक हवलदार ही बना रहूँ।
बुद्धिराम- लेकिन तुम्हारी हवलदारी के साथ हमरे राबर्ट द्वारा काटे जाने का क्या संबंध है ?
शेर सिंह- संबंध है सर। बहुत ही गहरा संबंध है।
बुद्धिराम- का गहरा संबंध है?
शेर सिंह- यही कि आपके यह प्यारे-दुलारे श्री राबर्ट जी ! अगर मुझे भी काट खाते हैं, तो आप मेरा भी प्रमोशन करवा कर मुझे इंस्पेक्टर बनवा दीजिएगा।
(सभी आश्चर्य से स्थिर हो जाते हैं)
(पूर्ण/समाप्त)

श्रीराम पुकार शर्मा

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