जयंती विशेष : भगवान महावीर सत्य अहिंसा और करुणा की प्रतिमूर्ति

राजीव कुमार झा, पटना। भगवान महावीर का नाम जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर के तौर पर सारे संसार में विख्यात है। उन्होंने मानवता को अहिंसा, शांति और प्रेम का संदेश दिया और मनुष्य को सारे प्राणियों के प्रति करुणा के धर्म का पालन करना जरूरी बताया। महावीर ने जीवन का श्रेय सिर्फ भौतिक सुख भोग विलास की भावना से अलग आत्मा की शांति और संसार का कल्याण बताया। उनका जन्म बिहार के वैशाली में एक क्षत्रिय राजकुल में हुआ था और उन्होंने बड़े होने पर संन्यास ग्रहण कर लिया और जीवन पर्यंत मानवता के उद्धार के कार्यों में संलग्न रहे। उन्होंने सदाचार को जीवन में सर्वोपरि धर्म बताया।

महावीर का देहांत बिहार के पावापुरी में हुआ। यह नालंदा जिले में स्थित है। भगवान महावीर का जीवन काल छठी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है और इस काल में वैदिक ब्राह्मण धर्म के विरोध में कई पंथों का विकास हुआ। जैन धर्म को भी इतिहासकार ऐसे पंथों में प्रमुख मानते हैं। बिहार के पावापुरी में महावीर के निर्वाण स्थल पर एक विशाल सरोवर के बीच सुंदर जल मंदिर स्थित है।

इसके बारे में किवदंती है कि यहां भगवान महावीर की अंत्येष्टि के दौरान इस पवित्र स्थल पर असंख्य लोगों की भीड़ इकट्ठी हुई थी और यहां से लौटने के वक्त एकत्रित लोग अपने साथ इस स्थल की मिट्टी अपने साथ घर लेकर गए थे जिससे यहां विशाल सरोवर बन गया था। जल मंदिर की स्थापना इसी के बीच की गई है।

महावीर ने मनुष्यता को सबसे सच्चा धर्म बताया और वेदों में वर्णित वर्णाश्रम व्यवस्था को अस्वीकार कर दिया। वे समाज में समानता के पक्षधर थे। भारत में काफी संख्या में जैन मतावलंबी आज भी हैं और राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के अलावा कर्नाटक और देश के अन्य भू भागों में जैन धर्मावलंबी रहते हैं।

जैन धर्म ने हमारे देश के कला स्थापत्य को भी प्रभावित किया। खजुराहो के मंदिरों में जैन मंदिर भी हैं। राजस्थान के माउंट आबू के जैन मंदिर सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। बिहार में राजगृह की पहाड़ियों पर भी जैन तीर्थंकरों के मंदिर स्थित हैं।

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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