“जात-जात” (भोजपुरी कविता) : हृषीकेश चतुर्वेदी

*जात-जात*

बाजत नइखे कवनो झंकार जात-जात,
टूटत बाटे दिल के अब तार जात-जात,

बिदाई के बेरा जस हो गईल अइसन,
बस हो जाइत तोहार दीदार जात-जात,

पिंजरा के पंछी पल भर में उड़ि जइहें,
सांस टूटे, ना अब होखे इंतज़ार जात-जात,

सजि जाइत मेहंदी जदि पिया के नाम के,
शमा पा लिहित परवाना के प्यार जात-जात,

सांस डूबत बा, दिल बेचैन भईल जात बा,
नज़र में बसे ताहार अक्स,ना बा करार जात-जात,

खुद के बैरी हो के उनुका से नेह निभवनी,
भेद दिलवा के खोलि के देखइतीं जात-जात,

पतझड़ त सगरे छवले बा जिनिगी में,
दू घरी खातिर ले के अइतs बहार जात-जात !!

✒️हृषिकेश चतुर्वेदी

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