क्या तृणमूल कांग्रेस से हो रहा मुस्लिम समुदाय का मोहभंग ! क्या है सागरदिघी उपचुनाव परिणाम के मायने ?

कोलकाता। मुर्शिदाबाद की सागरगिघी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार देवाशीष बनर्जी, कांग्रेस उम्मीदवार वायरन विश्वास से करीब 23 हजार वोटों के अंतर से हार गए। यह क्षेत्र अल्पसंख्यक बहुल इलाका है और इस पर तृणमूल कांग्रेस का पिछले 13 सालों से कब्जा था। सिर्फ यही सीट नहीं बल्कि राज्य की अधिकतर मुस्लिम बहुल सीटों पर पार्टी ने तमाम कयासों को पीछे छोड़ते हुए परचम बरकरार रखा है। लेकिन उपचुनाव में तृणमूल की शिकस्त और कांग्रेस उम्मीदवार की जीत ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। खासकर तब जब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि अब धीरे-धीरे तृणमूल कांग्रेस से मुस्लिम समुदाय का मोहभंग हो रहा है।

सागरदिघी विधानसभा एक ऐसा क्षेत्र है जहां 2011 जब पहली बार ममता बनर्जी सत्ता में आई थीं तब भी तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई थी। उसके बाद 2016 में भी पार्टी के उम्मीदवार जीते थे और 2021 में भी तृणमूल के सुब्रत साहा को लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया था। सुब्रत के ही निधन के बाद यहां उपचुनाव हुए जहां कांग्रेस उम्मीदवार वायरन विश्वास ने परचम लहराया है। आंकड़े बताते हैं कि इस विधानसभा सीट पर 68 फ़ीसदी अल्पसंख्यक मतदाता हैं। 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल को जहां 51 फ़ीसदी वोट मिले थे वहीं उपचुनाव में महज 35 फ़ीसदी मिले हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हाल ही में छात्र नेता अनीश खान की निर्मम हत्या, बीरभूम के बगटुई में अल्पसंख्यक समुदाय के 10 लोगों को जिंदा जलाए जाने की घटना और आईएसएफ के एकमात्र विधायक नौशाद सिद्दीकी को 40 से अधिक दिनों तक जेल में बंद रखने की राज्य सरकार की रणनीति की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय ने तृणमूल कांग्रेस से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तृणमूल के लिए सिरदर्द बढ़ाने वाला है।

जले पर नमक लगाते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ममता बनर्जी ने मुसलमानों से सबसे अधिक गद्दारी की है। बेवकूफ बनाकर उनका वोट हासिल किया है और बार-बार उन्हीं को प्रताड़ित किया है। खास बात यह है कि जिस दिन उपचुनाव का परिणाम आया उसी दिन नौशाद सिद्दीकी को हाई कोर्ट से जमानत भी मिल‌ गई। राजनीतिक आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय किसी खास पार्टी को नहीं बल्कि भाजपा के खिलाफ हमेशा वोटिंग करता रहा है। अगर माकपा-कांग्रेस, तृणमूल के विकल्प के तौर पर मौजूद रहे तो इस समुदाय का वोट उन्हें भी भरकर मिलेगा। यह उपचुनाव में साबित हो गया है।

इसलिए 2024 के लोकसभा चुनाव में भी माकपा कांग्रेस ने अचूक रणनीति अपनाते हुए अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों पर संयुक्त उम्मीदवार उतारने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। अगर ऐसा हुआ तो अल्पसंख्यक वोटों का बंटवारा ममता और बाकी पार्टियों में होगा और बहुसंख्यक वोट अगर एक साथ भाजपा के पाले में जाते हैं तो एक बार फिर बंगाल में लोकसभा सीटों की संख्या के मामले में भाजपा बाजीगर साबित हो सकती है।

2019 में भाजपा ने यहां 42 में से 18 सीटों पर कब्जा जमाया था और इस बार इससे अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य है। लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर होता है और राष्ट्रीय पार्टियों को ही मतदान करने में लोग देश का भला समझते हैं। ऐसे में कांग्रेस तृणमूल के मुकाबले न केवल अल्पसंख्यक समुदाय बल्कि हर एक तबके को लुभाने में अधिक सफल होगी। इसी तरह से अगर अल्पसंख्यक वोट बैंक तृणमूल से दूर होता रहा तो निश्चित तौर पर 2024 के लोकसभा का समीकरण अलग दिखेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *