- प्रो. कल्याणमल लोढ़ा जन्मशती समारोह का समापन
- सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय एवं श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय का साझा आयोजन
कोलकाता: ‘आनन्द के भारतीय दर्शन के शाश्वत कालजयी स्वरूप को प्रसाद प्रस्तुत करते हैं। कामायनी प्रासंगिकता का नहीं, शाश्वतता का प्रमाण है। रामचरितमानस की भाँति कामायनी भी शाश्वत कृति है। उसकी प्रासंगिकता की नहीं शाश्वत दर्शन की चर्चा होनी चाहिए। ‘सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय एवं श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रो. कल्याणमल लोढ़ा जन्मशती समारोह में बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित (लखनऊ) ने कामायनी के दर्शन पर विचार रखते हुए यह बात कही।
जन्मशती समारोह की श्रृंखला में आयोजित इस चतुर्थ एवं समापन समारोह को सम्बोधित करते हुए प्रो. दीक्षित ने अपने वैदुष्यपूर्ण वक्तव्य में ‘कामायनी के दर्शन’ में विश्वदर्शन की अवधारणा, वैज्ञानिकता और उपनिषदीय तत्वों के समावेश की चर्चा की। प्रसाद की समन्वयवादी– समष्टिवाद चेतना द्वारा समस्त मानव जाति, संस्कृति विचारधारा को व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि जयशंकर प्रसाद की कामायनी में राष्ट्रीयता के साथ सार्वभौमिकता भी है।
विशिष्ट वक्ता डॉ. राहुल अवस्थी ने जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए कहा कि अतीत के माध्यम से भविष्य को संवारने की दृष्टि प्रसाद साहित्य से प्राप्त होती है। डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. कल्याणमल लोढ़ा से जुड़े प्रेरक संस्मरणों का उल्लेख किया एवं कवि – हृदय की चर्चा की। उन्होंने पाठकों को कामायनी के अध्ययन हेतु ‘चैतन्यवादी–आनंदवादी–समष्टिवादी’ सूत्र दिया। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन करते हुए डॉ. कमल कुमार ने प्रो. लोढ़ा की जन्मशती के दौरान हुये कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की।
सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय के अध्यक्ष भरत जालान ने धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच पर श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय के अध्यक्ष महावीर बजाज भी उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत महानगर के लोकप्रिय गायक ओम प्रकाश मिश्र द्वारा प्रसाद के गीतों की सांगीतिक प्रस्तुति से हुई। स्वागत भाषण सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय की मंत्री दुर्गा व्यास ने दिया। अथितियों का स्वागत किया प्रो. राजश्री शुक्ला, डॉ सत्या उपाध्याय, डॉ. तारा दूगड़, विश्वम्भर नेवर, डॉ अभिजीत सिंह, अरुण प्रकाश मल्लावत ने।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में महानगर के साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद एवं विद्यार्थी विद्यार्थी उपस्थित थे। जिनमें अनिल ओझा नीरद, राजगोपाल सुरेका, डॉ. कमलेश पाण्डेय, डॉ किरण सिपानी, डॉ. कमलेश जैन, रामपुकार सिंह, लक्ष्मण केडिया, डॉ. संजय कुमार जायसवाल, विधुशेखर शास्त्री, रमाकांत सिन्हा, नंदलाल रोशन, योगेशराज उपाध्याय, डॉ. रामप्रवेश रजक, डॉ. राकेश पाण्डेय, मनीषा त्रिपाठी,
डॉ. अभिजीत सिंह, मंटू दास, ब्रह्माशंकर दूबे, दिव्या प्रसाद, रोशन पाण्डेय, गायत्री बजाज, बलवंत सिंह, सत्यप्रकाश राय, देवेश मिश्रा, मौसमी प्रसाद, राहत सिंह प्रमुख थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में पुस्तकाध्यक्ष श्रीमोहन तिवारी, परमजीत पंडित, विवेक तिवारी, मनीषा गुप्ता, अरविंद तिवारी एवं विजय कुमार जोशी समेत अन्य कई लोगों का योगदान रहा।