हरे माधव सत्संग कोल्हापुर-सांगली 23 व 25 अप्रैल 2023 को

मेरे सतगुरां हम शरण तेरी आए, कृपा करो रहमत करो

समरथ हे आत्मा, जागो तू जागो तू।
गुरु नाम से जागो तू , गुरु ध्यान से जागो तू।।

किशन सनमुख़दास भावनानी, गोंदिया। वैश्विक स्तर पर आदि अनादि काल, हजारों वर्षों पूर्व से ही भारत आध्यात्मिकता की अभूतपूर्व रस वंदना में डूबा हुआ देश है। उस काल से ही मानवीय जीव की यह मानसिकता रही है कि जब-जब पृथ्वी पर रहवासी जीवो पर अत्याचार वेदनाएं यातनाएं देने कोई दैत्य रूपी राक्षस रूपी योनि किसी वेश में पृथ्वी धरा पर गमन के लिए आती है तब-तब अलग-अलग धर्मों से अलग-अलग रूपों में पहचाने जाने वाले, वो उपर वाले नूरानी नूर, ईश्वर, अल्लाह, नानक, ईसा मसीह के रूप में इस धरा पर अवतरित होते हैं और उन दैत्य रूपी योनियों का वध कर जनकल्याण की बारिश कर अपना कार्य समाप्त कर अपने अनहद लोक में वापस गमन कर जाते हैं।

हालांकि हम मानवीय योनियों के लिए यह कालकांड 25, 50,100 बरस का हो जाता है, ऐसा कहा जाता है परंतु इन अवतरित हुई श्रेष्ठ योनियों के लिए यह कुछ महीनों, दिनों या घंटों की तरह होते हैं। बस समझ समझ का फ़र्क है। इसी कड़ी में चूंकि महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 23 अप्रैल और सांगली में 25 अप्रैल 2023 को हरे माधव सत्संग हो रहा है, इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आध्यात्मिक चर्चा करेंगे। मेरे सतगुरां हम शरण तेरी आए। कृपा करो, रहमत करो।

साथियों बात अगर हम हरिराया सतगुरु बाबाजी के श्री वचनों की करें तो, भारत के हृदय स्थल मध्य प्रदेश में स्थित परमार्थ, भगति के केन्द्र हरे माधव दरबार साहिब, माधवनगर कटनी, हरे माधव पंथ के महान उन्नायक हाजिरां हुजूर, पारब्रम्ह प्रभु के सर्गुण साकार रूप हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी धराजगत में प्राकट्य हो हरे माधव यथार्थ सतगुरुमत का प्रकाश खुलकर संपूर्ण जीव जगत को बक्श रहें हैं। आप सतगुरु साहिबान जी का फरमान-सतगुरुभगति के अलावा संसार के अन्य सभी पदार्थ, सारी सत्ताएं क्षीर्ण हैं। प्यारों! जगत में मिठास है ही नहीं, तभी तो आज इंसां के पास सब कुछ होते हुए भी तनाव ग्रस्त, हताश है, डिप्रेशन में हैं, पर संपूर्ण भक्ति के आंतरिक शहद कमाई वाले सतगुरु, ऐसी भक्ति के शहद मिठास को अपनी दुखभंजनी शरण में सभी जाति, धर्म, वर्गों की आत्माओं को समता, सर्वमांगल्य भाव से बक्शते हैं, जिससे मन के भारी ताप-संताप, तनाव सब समाप्त हो जाते हैं।

सतगुरु भगति बहुमूल्य रतन है, जो जीव आतम सतगुरु मेहर से इसे पाकर, नितनियम से अंतरमुखी सतगुरु भगति को गाढ़ा करती है, उसके समान कोई धनवान नहीं, वह आतम सदा तनाव, दुखों, भटकन से परे आत्मिक आनंद, शाश्वत तृप्ति, सुख को अंतर में पाती है। आप सतगुरु बाबाजी जीवों को असल भगति मार्ग से जोड़ने, उनके आत्मिक उद्धार वास्ते नित्य विभिन्न कस्बों, नगरों, शहरों, देश-विदेश में परमार्थी यात्राएं कर, पावन हरे माधव सत्संग वचनों, प्रभुमय वाणियों द्वारा मोह-माया, गफलत में फँसे अचेत जीवों को सांची सोझी बक्शते हैं। ऐसी ही परमार्थी यात्रा, हरे माधव सत्संग का आयोजन 23 व 25 अप्रैल 2023 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर एवं सांगली में होने जा रहा है।

पूरण सतगुरु के बिना दुलर्भ मानव जीवन व्यर्थ ही बीत जाता है, हम सब बड़े भाग्यशाली हैं जो हमें पूरण हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की पावन शरण, उनके पावन दर्शन, सतगुरु भगति, सतगुरु सेवा का परम सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। सो आप हम सभी भी हरे माधव यथार्थ सतगुरुमत पथ से जुड़ अपना जीवन सफल बनायें। साथियों बात अगर हम उपरोक्त सत्संग की रूपरेखा की करें तो सतगुरु बाबा जी का कोल्हापुर आगमन 21 अप्रैल 2023 को दोपहर 2 बजे एयरपोर्ट पर होगा जहां कोल्हापुर की लगभग सारी संगतें, एयरपोर्ट पर जाकर उनका स्वागत करेगी और साईं जी के सानिध्य में शोभायात्रा शाम 7 बजे गुरुनानक पैट्रोल पंप गांधीनगर, गणेश टॉकीज से निकाली जाएगी जो गांधीनगर का भ्रमण करते हुए गुरुघर स्थली पांच बंगला पर समाप्त होगी।

हरे माधव सत्संग 23 अप्रैल 2023 को शाम 6 बजे हरे माधव परमार्थ सत्संग भवन चिंचवड़ रेलवे फाटक के पास गांधीनगर कोल्हापुर में होगा जहां सत्संग पश्चात आम भंडारे लंगर की भी व्यवस्था की गई है। सत्संग का श्रवण करने महाराष्ट्र मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ कर्नाटक सहित अनेक राज्यों से संगतों के आने की संभावना है। बता दें कि महाराष्ट्र में कोविड के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए संगतों से कोविड उचित व्यवहार के पालन का निवेदन भी किया गया है तथा बाहर से आने वाली संगतों से आधार कार्ड या अन्य पहचान पत्र लाने का भी निवेदन किया गया है। उसी तरह 25 अप्रैल 2023 को महाराष्ट्र के सांगली में भी हरे माधव सत्संग का आयोजन शाम 6 बजे और आम भंडारे सहित सभी उपरोक्त व्यवस्थाएं सुविधाएं जारी रहेगी। संगतों के लिए कोल्हापुर से सांगली जाने की व्यवस्था भी आयोजकों द्वारा की गई है।

साथियों बात अगर हम आध्यात्मिकता में भक्ति की करें तो, क्यों किसी भी पथ की नींव भक्ति है? चाहे वो पेशेवर हो या व्यक्तिगत जीवन? हिंदु, मुस्लिम, यहुदी और ईसाई धर्म-ग्रंथों में भक्ति को ही सबसे व्यवहारिक व सभी व्यक्तियों के लिए निर्देशित किया गया है। भक्ति का अर्थ समझने के लिए व्यक्ति जिसकी भी भक्ति कर रहा है, उसे उस शक्ति/ईश्वर की पसंद, नापसंद का पता होना आवश्यक है। इसके लिए उस शक्ति से संबंधित साहित्य, मार्गदर्शन के लिए, उपयुक्त साधन है। ईष्ट के भक्तों के साथ सत्संग करना भी इसमें सहायक है। भक्ति में भक्त का विशवास/पूर्ण श्रद्धा ईष्ट पर होना एक आधारभूत आवश्यकता है। भक्त अपने ईष्ट को इतने सारे ईश्वरों में कितना शक्तिमान समझता है यह बात भी भक्ति में मायने रखती है। भक्त की नज़र में अगर उसका ईष्ट सर्वशक्तिमान है तो वह उससे अधिक आशा रख सकता है।

पर यदि इष्ट किसी विशिष्ट विभाग का अधिकार रखता है तो शायद भक्त को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर के मामलों के लिए विनति करने में संकोच हो सकता है। यह मान्यता एक व्यक्तिगत मामला है। हो सकता है भक्त इस स्थिति में न हो कि इतने सारे ईश्वरों के बारे में जानकारी प्राप्त कर पाए। शायद ऐसा करना व्यवहारिक दृष्टि से संभव भी न हो और वह किसी भी ईश्वर की भक्ति में, जो भी सबके ऊपर सबसे बड़ा ईश्वर है, उस को ही मन में सोचकर कर भक्ति करता रहे तो यह उसके और ऊपरवाले के बीच की बात है कि वह उसे किस प्रकार समझता है। दूसरे लोग इसमें कुछ भी नहीं कर सकते, सिवाय चर्चा के। भक्ति का विषय पूरी तरह एक व्यक्तिगत विषय है। यह भक्त व इष्ट के अंतरंग संबंधों का मामला है तो इसको व्यक्तिगत होना ही चाहिए। इस विषय में शास्त्रीय बातों का दखल कम ही होता है,क्योंकि इस इष्ट-भक्त संबंध का आधार, भक्त का स्वभाव व आचरण ही होता है (गीता4:11)

साथियों बात अगर हम आध्यात्मिकता में पूजा करें तो अक्सर लोग कहते है भगवान की इतनी पूजा की फिर भी इतने कष्ट मिले, किस्मत ही खराब है अगर आप पूजा करें तो भगवान को क्या फर्क पड़ेगा? भगवान हमारी पूजा का मोहताज नहीं है यह समझना जरूरी है। हम पूजा क्यों करते है पूजा करने का ध्येय होता है, आत्म शुद्धि, ताकि हम अपने कर्तव्य का निर्वाह सही तरह कर सके, पूजा हमारे मन को शान्ति दे ताकि हम अच्छे बुरे का निर्णय कर सके, जब मन शांत होगा तब हम शांत चित्त होकर मन लगाकर अपना कर्म पूरा कर सकेंगे। इस यथार्थ को न जानकर जो सिर्फ पूजा के कर्म काण्डरूपी स्थूल रिवाजों को ज्यादा महत्ता देते हैं वही भय में जीते है। पूजा का सही अर्थ है जिसे करने से हम में पूर्णता का अनुभव होता है पूजा द्वारा हम ईश्वर को कृतज्ञता प्रकट करते है जैसे अiपने हमें रोशनी देने के लिये सूर्य की रोशनी पृथ्वी के चारों ओर घुमाकर दी वैसे में आरती उतारता हूँ।

जैसे मेघ की वर्षा आपने दी में जल चढता हूँ, जैसे पेड़ पौधों से मेरे उपर कितने फूल गिराये, में पुष्‍प अर्पण करता हूँ, आपने भोजन दिया में प्रसाद चढता हूँ, इस भाव की महत्ता है न कि अर्पित वस्तु की, ईश्वर को यह सब की जरूरत नहीं है लेकिन हमें उज्ज्वल मन के लिये पूजा की दरकार है यह समझना बहुत जरूरी है अगर हम माने कि ईश्वर हममें भी वास करता है तो शिवोहम ही तो सत्य है इसलिये हम शिव जैसे बने। इसलिये शिव चालीसा पढ़ते है, राम जैसे बनें इसलिये हनुमान चालीसा पढ़ते है। इसका मतलब अगर हम ईश्वर के गुणगान करते है तो यह स्वयं की ही आराधना है अगर हम राणा प्रताप की कथा पढ़ते है तो उनके गुणों को ग्रहण करना ही उद्देश्य है। शिवजी अक्सर योग मुद्रा में रहते है, हमें भी थोड़ी देर योग करना जरूरी है और इस तरह न सिर्फ हम अपने शरीर को अच्छा रखेंगे बल्कि कृतज्ञ भाव को जानेंगे।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मेरे सतगुरां हम शरण तेरी आए, कृपा करो रहमत करो। हरे माधव सत्संग कोल्हापुर-सांगली 23-25 अप्रैल 2023
समरथ हे आत्मा, जागो तू जागो तू।
गुरु नाम से जागो तू , गुरु ध्यान से जागो तू।।

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