तारकेश कुमार ओझा की कविता : “घर में रहता हूं”

“घर में रहता हूं”

लॉक डाउन है,
इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बाल – बच्चों को निहारता हूं,
लेकिन आंखें  मिलाने से कतराता हूं .
डरता हूं, थर्राता हूं .
लॉक डाउन है,
इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बिना किए अपराध बोध से भरे हैं सब
इस अंधियारी रात की सुबह होगी कब .
मन की किताब पर नफे – नुकसान का  हिसाब लगाता हूं .
लॉक डाउन है, इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
सामने आई थाली के निवाले किसी तरह हलक से नीचे उतारता हूं .
डरता हूं , घबराता  हूं, पर सुनहरे ख्वाब से दिल को भरमाता हूं .
लॉक डाउन है, इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .

तारकेश कुमार ओझा

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