विनय सिंह बैस की कलम से : बुद्धम शरणं गच्छामि

रायबरेली। एयर फोर्स अकादमी में मेरे एक मित्र थे-संतोष कुमार गुप्ता, जौनपुर वाले। संतोष शांत स्वभाव के संतोषी व्यक्ति थे। वह बहुत अच्छे कुक थे और हलवाई भी। भोजन तो वह लाजवाब बनाते ही थे, लौंगलता जैसी मिठाई भी चुटकियों में बना दिया करते थे। वह दोस्तों की मदद करने को हमेशा तैयार रहते, इसलिए संतोष हम सबके favourite थे। संतोष गुप्ता अत्यंत मेहनती व्यक्ति थे तथा अपने ट्रेड कार्य के उस्ताद भी। किरन वायुयान के इंजन की कठिन से कठिन स्नैग को हल करने की क़ाबलियत उनमें थी। इसलिए वायुसेना में भी उनकी बड़ी इज्जत थी। बड़े अधिकारी भी उनको पूरा सम्मान देते थे।

लेकिन गुप्ताइन भाभी पता नहीं क्यों उनसे बहुत दुखी रहती। एक दिन वायुसेना अकादमी के बाहर ग़ागिलापुर स्थित उनके घर गया। चाय पानी के बाद भाभीजी अपना दुःखड़ा लेकर बैठ गई। बड़े करुण स्वर में बोली- “भाई साहब, मैं इनसे बहुत दुःखी हूँ। कभी कुछ बोलते ही नहीं।”

मैंने कहा- “भाभी जी, आप तो किस्मत वाली हैं। पति के रूप में आपको शांत, सौम्य, मितभाषी साक्षात ‘गौतम बुद्ध’ मिले हैं। आपके पति आपको कभी कुछ नहीं कहते, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है भला??”

“भाई साहब, ये बस कहते ही कुछ नहीं, लेकिन करते हमेशा अपने मन की हैं। मेरी बिल्कुल भी नहीं सुनते” भाभी जी ने अपना सारा दुःख इस एक वाक्य में उड़ेल दिया। गुप्ता जी की भांति हमेशा अपने मन की करने की चाहना लिए भगवान गौतम बुद्ध की शरण में आया हूँ।

बुद्धम शरणं गच्छामि।

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