विनय सिंह बैस की कलम से : दिल्ली वाले जीजा

विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। कुछ वर्ष पहले मुंबई में मेरे सगे साले की सगाई थी। मैं दिल्ली से हवाई जहाज द्वारा कोट-पैंट पहन कर कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचा था। लड़की वालों की तरफ से एक खूबसूरत, बड़े और महंगे गेस्ट हाउस में कार्यक्रम रखा गया था। जैसे ही हम लोग वहां पहुंचे ठंडा- गरम आदि से हमारा स्वागत किया गया। कुछ समय बाद सगाई की रस्में शुरू हो गई। मैं नीचे बैठा हुआ देख रहा था कि भीड़ में कुछ महिलाएं सीधे ब्यूटी पार्लर से आई थी।

कुछ मॉडर्न लेडीज एक हाथ से घाघरा और एक हाथ से मोबाइल पकड़े हुए थे। वह बोलते समय मुंह भी बहुत कम खोल रही थी। थैंक्स, इट्स ओके, वाउ, ब्यूटीफुल जैसे छोटे-छोटे शब्दों से काम चला रही थी। वह लोग तो खुश थी या खुश होने का नाटक कर रही थी लेकिन मैं इस चिंता में दुबला हुआ जा रहा था कि यह अल्ट्रा मॉडर्न लेडीज भोजन कैसे करेंगी? और करेंगी तो किस हाथ से करेंगी तथा भोजन करते समय इनका महंगा मेकअप खराब तो नहीं हो जाएगा?

दूसरी तरफ पुरुष पार्टी के वे सदस्य जो बीच में मदिरालय हो आए थे वह बच्चों के साथ डीजे पर खुलकर डांस कर रहे थे और जो नहीं जा पाए थे, वह मौके का इंतजार कर रहे थे। गेस्ट हाउस का, पुरुष-महिलाओं का और अन्य चीजों का मेरा ऑब्जरवेशन चल ही रहा था कि मुझे किसी ने कहा कि आपको फूड काउंटर पर बुलाया जा रहा है।

मैंने सोचा होगी कोई बात। खैर मैं इतराते हुए वहां पहुंचा तो मुख्य हलवाई ने पूछा-“आप ही दिल्ली वाले जीजा जी हैं?”
मैंने सगर्व कहा “हां, बिल्कुल हूँ। जीजा भी हूं और दिल्ली वाला भी हूं।”

पहचान कन्फर्म होते ही हलवाई ने सारे बर्तनों का ढक्कन खोल दिया और मुझे एक बड़ी प्लेट, उसके नीचे एक टिश्यू पेपर तथा एक चम्मच पकड़ा कर कहा- “आप पूरे भोजन को एक बार टेस्ट करके देख लीजिए। कुछ कम ज्यादा है तो हम अभी ठीक कर लेंगे। इसके बाद ही आप सबको भोजन परोसेंगे।”

एक बार के लिए तो मेरे दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाया कि लड़के के पिताजी हैं, फूफा हैं, मौसा हैं और भी बहुत से बुजुर्ग और अनुभवी लोग हैं। फिर इस कार्य के लिए मुझे ही क्यों चुना गया है??
वैसे भी मैं वायुसेना में तकनीकी कार्य करता हूं, कुक तो नहीं हूं। मुझे भोजन और उसके स्वाद के बारे में कोई विशेष जानकारी भी नहीं है??

लेकिन फिर यह सोच कर खुश हो गया कि इतने बुजुर्ग लोगों के रहते हुए भी मुझे इतनी इज्जत बख्शी गई है। इसका मतलब यह कि अभी भी ससुराल में मेरी ‘जीजा’ जैसी इज्जत है, मैं अभी ‘फूफा’ नहीं हुआ हूं। यह सोच कर मन ही मन खुश होते हुए मैंने एक-एक करके सभी खाद्य पदार्थ उठाकर पूरी संजीदगी से थोड़ा-थोड़ा टेस्ट किया। फिर मेरी समझ में जैसा आया वैसा बताता गया कि- रायते में थोड़ा नमक कम है, मिक्स वेज कुछ अधिक तीखी है, पनीर की सब्जी बिल्कुल परफेक्ट है आदि आदि।

इसके बाद मैं प्लेट रखकर और टिशू पेपर से हाथ पोंछकर पीछे मुड़ने लगा तो मुख्य हलवाई बोला- “जीजा जी ‘खुशी’ तो देते जाइए??”
मैंने कहा- “अरे भाई, मैं बहुत खुश हूं। आपने भोजन कुल मिलाकर बढ़िया बनाया हुआ है।”

हलवाई बोला – “आप समझे नहीं जीजाजी। आपका जो भी मन करे खुशी से कुछ भी हज़ार-दो हज़ार ‘बख्शीश’ देते जाइए।”
तब मुझे बहुत जोर से समझ आया कि मुझे ‘जीजा’ नहीं बल्कि ‘बकरा’ बनाया गया है।

(विनय सिंह बैस)
दिल्ली वाले जीजा

विनय सिंह बैस, लेखक

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