डॉ. आर.बी. दास की कलम से…

यू ही नहीं जागती है,
रात भर ये आंखे,
मां पापा को संघर्षों से,
जूझते देखा है,

मैने देखा है,
बदलते रिश्तों को,
यू बेवजह ही,
अपनो को रूठते देखा है,

गैर भी हमारे होते हैं,
समय सही रहता है जब,
कमजोर वक्त में मैने,
रिश्तों को टूटते देखा है,

अकेले चले जब रास्तों पर,
तो अंधेरा भी गहराया था,
उस अंधेरे में मैने,
साया भी छूटते देखा है।

Dr. R.B. Das
Ph.D (Maths, Hindi) LLB

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