आशा विनय सिंह बैस की कलम से : राम इस लोक के हृदय में बसते हैं और विश्वव्यापी हैं

आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। राम इस लोक के हृदय में बसते हैं, इसलिए उन्हें लोकनाथ कहा जाता है। इस भूलोक और संस्कृति दोनों में राम समाहित हैं। माता सीता और भगवान श्रीराम विश्वव्यापी हैं। वह पूरे विश्व में लोकप्रिय है। प्रमाण के लिए शुरुआत अखंड भारत का हिस्सा रहे पाकिस्तान से करते हैं :-

1. पाकिस्तान के लाहौर का ऐतिहासिक नाम लवपुरी था जिसकी स्थापना प्रभु राम के पुत्र लव ने की थी। यह नगरी उनकी राजधानी हुआ करती थी। बाद में इसका नाम लौहपुरी हुआ और फिर इसे लाहौर कहा जाने लगा। अब भी यहां के एक किले में लव का मंदिर है।

2. कुछ वर्षों पूर्व तक विश्व का एकमात्र हिंदू देश रहा पड़ोसी नेपाल तो भगवान राम की ससुराल है। वहां पर जनक जी का महल और वह यज्ञशाला आज भी स्थित है जहां पर भगवान राम सहित चारों भाइयों का विवाह हुआ था। नेपालवासी आज भी भगवान राम को अपना दामाद मानते हैं और प्रत्येक शुभ कार्य पर अयोध्या उपहार भेजते रहे हैं।

3. एक और पड़ोसी देश श्रीलंका में भगवान राम से संबंधित तमाम तथ्य और निशान बिखरे पड़े हैं। एक टीवी चैनल ने तो श्रीलंका में भगवान राम की निशानियां को लेकर कई घंटे का एक पूरा कार्यक्रम किया था। श्रीलंका का पर्यटन मुख्यतः इसी पर आधारित है।

4. बर्मा में रामायण कई रूपों में प्रचलित है। लोक गीतों के अतिरिक्त रामलीला की तरह के नाटक भी खेले जाते हैं। बर्मा में बहुत से नाम ‘राम’ के नाम पर हैं। रामवती नगर तो राम नाम के ऊपर ही स्थापित हुआ था। अमरपुर के एक विहार में सीता-राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के चित्र आज तक अंकित हैं।

5. इबोनिया का मालागासी महाकाव्य अपने भव्य कथानक में भारतीय महाकाव्य रामायण से मिलता-जुलता है।

6. मलेशिया को रावण के नाना के राज्य के रुप में माना गया है। मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। रामायण का मलेशियाई संस्करण (हिकायत सेरी राम) के रूप में जाना जाता है। वहां मुस्लिम भी अपने नाम के साथ अक्सर ‘राम-लक्ष्मण’ और ‘सीता’ नाम जोड़ते हैं।

7. थाईलैंड के राजा अपने को राजा राम-X मानते हैं। थाईलैंड के पुराने रजवाड़ों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज करने की परम्परा है। वे सभी अपने को रामवंशी मानते थे। थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रंथ ‘रामायण’ है। रामकियेन (रामायण) देश का राष्ट्रीय महाकाव्य है।

8. भारत से करीब 4500 किमी की दूरी पर स्थित देश कम्बोडिया में रामायण को ’’रिमकर’’ के नाम से जाना जाता है। रिमकर’’ यानी राम की महिमा होती है। विश्व का सबसे बड़ा विशाल अंकोरवाट (विष्णु) मंदिर है। यहां की संस्कृति में भगवान राम घर-घर और लोगों के दिलों मे बसते हैं, यहां राम को हर आम आदमी की कहानी से जोड़कर देखा जाता है।भारत में जिस तरह से भगवान राम को पूजते हैं, उसी तरह कम्बोडिया में भी राम की मान्यता है।

9. विश्व के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया में रामायण का प्रतिदिन राष्ट्रीय टेलीविजन से प्रसारण होता है और जनसंख्या के हिसाब से विश्व में सबसे ज्यादा रामलीलाएं वही खेली जाती हैं। जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरुषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू है। रामायण के कई प्रसंगों के आधार पर वहां आज भी रात-रात भर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह-जगह अंकित मिलते हैं। सुमात्रा द्वीप का वाल्मीकि रामायण में स्वर्ण-भूमि नाम दिया गया है।रामायण यहां के जन-जीवन में वैसे ही बसी है, जैसे भारतवासियों के। बाली द्वीप आर्य संस्कृति का एक दूरस्थ सीमा स्तम्भ है। रामायण का प्रचार यहां भी घर-घर में है।

10. चीन में रामायण का एक अलग ही रूप है। चीनी साहित्य में राम कथा पर आधारित कोई मौलिक रचना तो नहीं हैं, लेकिन बौद्ध धर्म ग्रंथ त्रिपिटक के चीनी संस्करण में रामायण से संबद्ध दो रचनाएं मिलती हैं। ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’।तीसरी शाताब्दी में चीनी भाषा में लिखी गई ‘अनामकं जातकम्’ का मूल भारतीय रामायण से मिलता जुलता है। जबकि ‘दशरथ कथानम्’ के अनुसार राजा दशरथ जंबू द्वीप के सम्राट थे और उनके पहले पुत्र का नाम लोमो (राम) था। दूसरी रानी के पुत्र का नाम लो-मन (लक्ष्मण) था। राजकुमार लोमो में ना-लो-येन (नारायण) का बल और पराक्रम था। उनमें ‘सेन’ और ‘रा’ नामक अलौकिक शक्ति थी तीसरी रानी के पुत्र का ना पो-लो-रो (भरत) और चौथी रानी के पुत्र का नाम शत्रुघ्न था।

11. तिब्बत में रामकथा को ‘किंरस-पुंस-पा’ कहा जाता है। वहां के लोग प्राचीनकाल से वाल्मीकि रामायण की मुख्य कथा से परिचित थे। तिब्बती रामायण की छह प्रतियां तुन-हुआंग नामक स्थल से प्राप्त हुई है।

12. पेरू में राजा स्वयं को सूर्यवंशी ही नहीं ‘कौशल्यासुत राम वंशज’ भी मानते हैं। रामसीतव नाम से आज भी यहां राम-सीता उत्सव मनाया जाता है।

13. दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला गर्व से अपने को भगवान श्रीराम का वंशज मानती हैं।

14. प्राचीन मिस्र के फराओ शासक अपने को रामेसेस कहते थे। रामेसेस -II को लगातार 15 विजयों के कारण ‘रामेसेस महान’ भी कहा जाता है।

15. बेल्जियम के पादरी कामिल बुल्के रामायण से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने भारत आकर और यहां रहकर दुनियाभर में फैले ‘रामकथा’ के विषयों पर शोध किया।

16. जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर बसे एक बड़े शहर का नाम रामल्लाह है।

17. कुर्दिस्तान की एक गुफा में भगवान राम और गदा लिए हुए उनके सेवक हनुमानजी की आकृति मिली है।

इन देशों के अतिरिक्त फिलीपीन्स, वियतनाम, म्यांमार (बर्मा), लाओस, जापान और प्राचीन अमरीका तक राम-कथा का प्रभाव मिलता है। मैक्सिको और मध्य अमरीका की ‘मय’ सभ्यता और ‘इंका’ सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है, उसमें रामायण कालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। दुनियाभर के देशों में साहित्यिक रुप से राम कथा का कोई न कोई रूप तो मिलता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बुल्के ने अपने शोध ग्रंथ ‘रामकथा उत्पत्ति और विकास’ में रामायण और रामकथा के एक हजार से ज्यादा प्रतिरूप होने की बात कही है।

रामकथा का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वर्ष 1609 में जे. फेनिचियो ने ‘लिब्रो डा सैटा’ नाम से राम कथा का अनुवाद किया था। ए. रोजेरियस ने ‘द ओपेन रोरे’ नाम से डच भाषा में राम कथा का अनुवाद किया। जेवी टावर्निये ने 1676 में फ्रेंच में राम कथा का अनुवाद किया था। वानश्लेगेन ने 1829 में रामायण का लैटिन में अनुवाद किया और साल 1840 में सिंगनर गोरेसिउ द्वारा इटैलियन में राम कथा का अनुवाद किया गया। रूसी विद्वान वारान्निकोव ने 20वीं सदी में रामचरितमानस का रूसी भाषा में अनुवाद किया था। जबकि विलियम केटी ने 1806 में अंग्रेजी में रामायण का अनुवाद शुरू किया था पर इसे पूरा मार्शमैन, ग्रिफिथ, व्हीलर ने किया।आज दुनियाभर में 300 से ज्यादा रामायण प्रचलित हैं।

इससे सिद्ध होता है कि राम और राम का नाम अखिल विश्व में व्याप्त है। तभी तो तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिख गए हैं :-
“सियाराम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी।।”

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *