जानिए मकर संक्रांति कब है और इसका महत्त्व क्या है

मकर संक्रांति (15 जनवरी 2024 सोमवार को पुण्यकाल सूर्योदय से सूर्यास्त तक)

वाराणसी। जिस दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन उतरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है। उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है। नीचे के केन्द्रों में वासनाएँ, आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति और आनंद होता है। संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है। इस दिन आप सोच व कर्म की दिशा बदलें। जैसी सोच होगी वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा वैसा कर्म होगा। हाड-मांस के शरीर को सुविधाएँ दे कर विकार भोगकर सुखी होने की पाश्चात्य सोच है और हाड-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रिय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों में भी सामने वाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच है।

सम्यक क्रांति…. ऐसे तो हर महिने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है। उसीका इंतजार किया था भीष्म पितामह ने। उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी।

पुण्य पुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन : जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है। संक्रांति के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो। भगवान सूर्य को भी तिल मिश्रित जल से अर्घ्य दें। इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है। पानी में भी थोड़े तिल डाल के पिएं तो स्वास्थ्य लाभ होता है तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है। इस दिन सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से 10 हजार गौदान करने का फल होता है। जो भी पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं। तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है। तिल मिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतु-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते हैं, उनसे आदमी लड़ने में सफल होता है।

सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र : ब्रम्ह ज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था। उनके बाद रजा मनु को, यमराज को…. ऐसी परम्परा चली। भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं। बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं। कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है! कुछ भी लेना नहीं, न किसी से राग है न द्वेष है। अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं।

‘पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम:। अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा।

ओज-तेज-बल का स्त्रोत – सूर्यनमस्कार : सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है। ॐ सूर्याय नम:। ॐ भानवे नम:। ॐ खगाय नम: ॐ रवये नम: ॐ अर्काय नम:।….. आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है।

पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री

ज्योतिर्विद् वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848

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