पटना । पैंतीस साल के हो गए सभी को मना-मना कर! बीबी हों, भाय-बहिन हो, साहब हों, कोई मानने को राज़ी ही नही! ज़िंदगी कट जाएगी शायद इन्हें मनाते-मनाते! एक को मनाओ तो दूसरा गड़बड़ा जाता है, ऐसे में नए साल को भी मनाएँ? काहे भाई?
धर्मपत्नी और साहब को मनाने को समझ लीजिए मजबूरी! पापी पेट का सवाल है वो तो मार्च क्लोजिंग के पहले काम खत्म करके बिल लगाने को, पर इस नए साल में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं जिसकी वजह से इसे मनाया जाए?
अब कोई हमें यही बता दें कि भैया इकतीस दिसंबर और एक जनवरी में अंतर क्या है? जहाँ इकतीस सूखा था वहाँ एक को भी कड़की है! जो पिछले साल तर थे वो नए साल में भी मलाई खाएँगे! तुम अपनी देख लो, तुम कहाँ खड़े हो?
तीन चौथाई बोतल पी कर आधी रात तक सड़कों पर कूदना-फाँदना तो है नही!
बिहार के शहरी क्षेत्र के लोग हो तो मुहल्ले की गुफाओं टाइप गलियों में घुसे रहो वरना दांत किटकिटाते पुलिस वाले भैया को मुँह सूंघने का या अल्कोहल मापी यंत्र मुंह मे घुसाने का मौक़ा देना है तो इकतीस दिसंबर की रात का इंतज़ार करने की क्या ज़रूरत है?
और फिर एक जनवरी की सुबह सर फटेगा, हैंग ओवर होगा! तुम्हारा ख़ाली पर्स तुम्हें बद्दुआएँ देगा सो अलग! अलग कुछ और होगा नहीं तुम्हारी ज़िंदगी में! वही तुमसे पीछा छुड़ाने को आतुर प्रेमिका!
वही नाराज़ पत्नी महोदया, वही खूसट साहब! ख़ाली जेब और भन्नाता दिमाग़ देख कर ये और भी विकराल रूप धारण कर लेते हैं!!
सो बेटा, छोड़ो चोंचले ये नए साल के! इन यूरोपीय देशों की नक़ल में कुछ नही धरा! भारतीय संस्कृति का सम्मान करो, मंदिर हो आओ पड़ोस के! मनाना ज़रूरी हो तो होली दिवाली मना लो!! वक्त पर सो जाओ, वक्त पर उठो! मन लगाए रहो अपने काम में, जो मनाने लायक़ हो उन्हें ही मनाओ! राज़ी रखो नवब्याहता पत्नी और साहब को! कहीं इसने तुम्हारा पत्ता काट दिया तो न घर के रहोगे न घाट के! ये नया साल फिर हथेली लगा नहीं पाएगा! अब हम तो आगे के दस-बीस बाल सफ़ेद कर चुके ये ग़लतियाँ कर-कर के! ऐसे में ज्ञान बांटने की पात्रता आ चुकी हमें! सो वही, कर भी चुके!
आगे की सूचना ये कि हम तो ससुराल में पत्नी संग मना रहे नए साल को!
अब आप अपनी देख लो, क्या करना है ?
अमिताभ अमित – mango people