आजादी विशेष || रायबरेली में महात्मा गांधी ने जलाई थी सत्याग्रह की ज्वाला

रायबरेली। हिंदी सहित्य के श्लाका पुरूष महावीर प्रसाद द्विवेदी, पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की साधना की धरती रही रायबरेली से जहां हिंदी साहित्य के युग की रचना हुई है वहीं आजादी की लड़ाई में यहां के वीर सपूतों ने क्रांति की ज्वाला भी लिखी है। यह क्षेत्र आजादी के आंदोलनों की गतिविधियों का केंद्र रहा है। महात्मा गांधी ने स्वयं यहां आकर सत्याग्रह की ज्वाला जलाई थी। रायबरेली के लालगंज कस्बे में स्थित गांधी चबूतरा आज भी आजादी की लड़ाई की गौरव गाथा का सारथी है। आजादी के आंदोलन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ देश के कई नामचीन नेताओं ने रायबरेली को अपना केंद्र बनाया था।

गुलामी के विरुद्ध बिगुल फूंकने में नेताओं को बैसवारा के अमर सपूतों का साथ मिला। बैसवारा में ही देशभक्ति में डूबे क्रांतिकारी नौजवानों को यहां विशेष प्रशिक्षण दिया गया था। 17 नवंबर 1940 में यहां पहुंचे महात्मा गांधी ने आजादी के दीवानों के दिलों में क्रांति की ज्वाला भरी थी। जिसने इस धरती को धन्य किया था। नगर के मध्य स्थित गांधी चबूतरा इस समय आजादी के दीवानों का केंद्र था।

यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूर्यकुमार त्रिपाठी उर्फ सुरजू, गुप्तार सिंह, बनवारी लाल त्रिवेदी, रमाकांत मिश्र, जयचंद्र पांडेय, शिव बालक मिश्र, गया प्रसाद शुक्ला समेत रफी अहमद किदवई, केडी मालवीय, राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन, मोहनलाल शास्त्री, फिरोज गांधी सहित कई बड़े-बड़े नेताओं ने कांग्रेस के आजादी के आंदोलनों को संचालित करने के लिए यहीं पर सभाएं की थी। आजादी की लड़ाई में 17 नवंबर 1921 को प्रिस आफ वेल्स (ब्रिटिश युवराज) के भारत आगमन का विरोध करने के लिए लालगंज के गांधी चबूतरे से आंदोलन चलाया गया था।

17 दिसंबर 1940 को सत्याग्रह आंदोलन में भागीदारी करने व आंदोलन को सफल बनाने के लिए पं. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी यहीं से एकजुट होने का आह्वान किया था। लालगंज में ही सतांव के श्याम नारायण बैद्य, शिव बालक मिश्र, काशी प्रसाद मिश्र, स्वामी दिव्यानंद, जगन्नाथ दीक्षित, जयचंद्र पांडेय, रमाकांत मिश्र, शिव बालक दुबे ने युवाओं के दल लाल लंगूर को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार किया था।

10 जनवरी 1941 को सत्याग्रह के दौरान बड़ी संख्या में युवाओं ने ही लालगंज के रेलवे स्टेशन व डाकघर को क्षतिग्रस्त कर दिया था, जिसमें जगन्नाथ सिंह, उनके पिता जगदत्त सिंह निहस्था, संकठा प्रसाद कोरिहरा, विजय बहादुर, महानंद पांडेय आदि पर केस चले और उन्हें सजा हुई। इसके अलावा सरेनी का गोली कांड भी आजादी के आंदोलन की एक ऐतिहासिक घटना है जब बैसवारा के लोगों ने अपनी जिजीविषा का परिचय दिया था।

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