चेहरे की हंसी दिखावट सी हो रही है,
असल जिंदगी भी बनावट सी हो रही है,
अनबन बढ़ती जा रही रिश्तों में भी,
अब अपनों से बगावत सी हो रही है,
पहले ऐसा था नहीं जैसा हूं आजकल,
मेरी कहानी कोई कहावत सी हो रही है,
दूरी बढ़ती जा रही मंजिल से मेरी,
चलते चलते भी थकावट सी हो रही है,
शब्द कम पर रहे मेरी बातों में भी,
खामोशी की जैसे मिलावट सी हो रही है,
और मशबरे की आदत ना रही लोगों को,
अब गुजारिश भी शिकायत सी हो रही है।
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