डॉ. आर.बी. दास की कविता

अंधों को अंधेरे से कोई फर्क नहीं पड़ता,
उगते सूरज से भी कोई फर्क नहीं पड़ता,

दिखाई नहीं देता उन्हे, सच झूठ का आईना,
आंखो में बंधी पट्टी से भी कोई फर्क नहीं पड़ता,

जिन्हे आदत हो जाती है, गुलामी में रहने की,
उन्हे अपनी आजादी से भी कोई फर्क नहीं पड़ता,

जो बार बार दिखाते हैं, उन्हे ही सच मान लेते हैं,
दिल के समझाने पर भी, कोई फर्क नहीं पड़ता,

कभी-कभी जो दिखता है, जरूरी नहीं वो सच हो,
उन्हे हकीकत दिखाने से भी, कोई फर्क नहीं पड़ता…।

Dr. R.B. Das
Ph.D (Maths, Hindi) LLB

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