।।ये जमाना यूं ही चलता आया है।।
डॉ. आर.बी. दास
जब झूठ से काम निकल रहा है,
फिर सच का बोझ कोई क्यों उठाएगा,
शहर भर में फल सस्ता मिल रहा है,
फिर खाम-खा कोई बाग क्यों लगाएगा,
जब खुशियां सारी छोड़ जाना है,
फिर भला कोई लौट कर कोई क्यों आएगा,
चांद पैसे में निभ रहे हैं रिश्ते,
मूर्ख ही होगा जो दिल से निभाएगा,
खुद मुझे नहीं अभी तक समझ मेरी,
फिर ये जमाना मुझे क्या खाक समझाएगा,
ये जमाना यूं ही चलता आया है जमाने से,
ये जमाना जमानों तक यू ही चलता जाएगा…
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