डॉ. आर.बी. दास की कविता : लोग

।।लोग।।
डॉ. आर.बी. दास

जरा सा ऊपर उठने को न जाने
कितना गिर जाते हैं लोग,
नजरों से गिरकर कोई कहां उठ पाया है,
ये भूल जाते हैं लोग।

झूठे अंधेरों में छिपाते है,
किरदार अपने अपने,
सच का सूरज निकलते ही,
गुम हो जाते हैं लोग।

खोदते है गढ्ढे दूसरों को गिराने के लिए,
फिर अपने ही फैलाए दल-दल में,
धस जाते हैं लोग।

तुम्हारा हूं, तुम्हारा हूं कहकर,
जो भरोसा जीत लेते हैं,
पलक झपकते ही किसी और के
हो जाते हैं लोग।

जो सपने, आत्मविश्वास, दिल, सब्र सब टूटने पर भी,
अपनी औलाद का माथा चूमकर,
मुस्कुरा देती हैं,
उस स्त्री को कमजोर बताते हैं लोग।

बताते हैं लोग कि बहुत छोटी कविता लिखते हैं हम,
जरा सी वाह वाह पाने को हमारी ही
पंक्तियां दोहराते हैं लोग…!!!

Dr. R.B. Das
Ph.D (Maths, Hindi) LLB

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