।।जीवन एक गणित।।
डॉ. आर.बी. दास
अंकगणित सी सुबह है मेरी,
बीज गणित जैसी शाम,
रेखाओं में खींची हुई है,
मेरी उम्र तमाम,
भोर किरण ने दिया गुणनफल,
दुःख का सुख का भाग,
जोड़ दिए आहों में आंसू,
घटा प्रीत का फाग,
प्रश्न चिन्ह ही मिले सदा से,
मिला न पूर्ण विराम,
जन्म मरण के “ब्रैकेट” में,
यह जिंदगी हुई कैद,
“ब्रैकेट” के ही साथ खुल गए,
इस जीवन के भेद,
नफी नफी सब जमा हो रहे,
आंसू आठों थाम,
आंसू आह अभावों की है,
ये रेखाएं तीन,
खीच रही है त्रिभूज जिंदगी का,
हो करके गमगीन,
अब तक तो ऐसे ही बीते है,
आगे जाने राम…
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