कुण्डलिया
पानी की फिर कब मिले, पता नहीं इक घूँट।
पीता कुछ, कुछ “डील” में, रख लेता है ऊँट।।
रख लेता है ऊँट, और किस करवट बैठे।
यही सभी गुण आज, सियासत में भी पैठे।।
नेता की है “डील”, सात पुश्तों तक खानी।
रखे भले ही ऊँट, सात दिन तक का पानी।।
पानी की फिर कब मिले, पता नहीं इक घूँट।
पीता कुछ, कुछ “डील” में, रख लेता है ऊँट।।
रख लेता है ऊँट, और किस करवट बैठे।
यही सभी गुण आज, सियासत में भी पैठे।।
नेता की है “डील”, सात पुश्तों तक खानी।
रखे भले ही ऊँट, सात दिन तक का पानी।।