डीपी सिंह की कुण्डलिया

चर्बी से वाराह की, कोई नहीं मलाल।
चर्बी चढ़ी दिमाग़ पर, वही बनी है काल।।
वही बनी है काल, अगर इतनी है दिक्कत।
अपनी हो वैक्सीन, ज़रा सी करो मशक्कत।।
काफ़िर का विज्ञान, भले कितना हो हर्बी
लेकिन तुम्हें हराम, हो न हो कोई चर्बी।।

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