अक्सर मन्दिर-घाट पर, हर चुनाव के बीच
रूप बदलकर घूमते, कालनेमि-मारीच
कालनेमि-मारीच, जनेऊ पहन कोट पर
बनें भेड़िये भेड़, रखें नख-दन्त छिपाकर
आतंकी के यार, समझकर हमें कबूतर
बिजली-पानी मुफ़्त, फेंकते दाना अक्सर
–डीपी सिंह
अक्सर मन्दिर-घाट पर, हर चुनाव के बीच
रूप बदलकर घूमते, कालनेमि-मारीच
कालनेमि-मारीच, जनेऊ पहन कोट पर
बनें भेड़िये भेड़, रखें नख-दन्त छिपाकर
आतंकी के यार, समझकर हमें कबूतर
बिजली-पानी मुफ़्त, फेंकते दाना अक्सर
–डीपी सिंह