विश्व लिपि के संदर्भ में देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि : डाॅ.शहाबुद्दीन शेख

निप्र, उज्जैन : आज वैश्विक स्तर पर लगभग चार सौ लिपियाँ प्रचलित है, परंतु इन समस्त लिपियों में देवनागरी को सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि होने का सम्मान प्राप्त है। इस आशय का प्रतिपादन नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष प्राचार्य डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना व नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘नागरी लिपि : वैज्ञानिकता के परिप्रेक्ष में ‘इस विषय पर आयोजित आभासी राष्ट्रीय गोष्ठी में वे अध्यक्षीय मंतव्य दे रहे थे।

डाॅ. शहाबुद्दीन ने आगे कहा कि स्वर और व्यंजनों की पर्याप्तता व क्रमबद्धता, अक्षरात्मकता, सरलता, सुगमता, सुंदरता, स्पष्टता, कलात्मकता, भ्रमहीनता, सर्वसमावेशकता, लचीलापन आदि गुणों के कारण देवनागरी लिपि ने संविधान सम्मत राष्ट्रलिपि के आगे विश्व लिपि तक की अपनी यात्रा सफल की है। आज एक आदर्श लिपि के रूप में नागरी लिपि सर्वमान्य हो चुकी है।

मुख्य अतिथि तथा नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डाॅ. हरिसिंह पाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि नागरी लिपि बहुत प्राचीन है। प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि नागरी लिपि का प्रचलन हजारों वर्षों से चल रहा है। क्या? क्यो? और कैसे? का उत्तर विज्ञान देता है। देवनागरी में क्या? क्यों? केसै? के उत्तर देने की पूर्ण क्षमता है।

हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने कहा कि नागरी लिपि में जितना है, उतना रोमन या अन्य लिपियों में कदापि नहीं है।मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति का नागरी प्रकोष्ठ देवनागरी के प्रचार प्रसार में अमूल्य योगदान कर रहा है। सुवर्णा जाधव, मुंबई ने कहा कि आचार्य विनोबा भावे जी देवनागरी लिपि को विश्वलिपि के रूप में देखना चाहते थे। नागरी में प्रत्येक वर्ण की सुनिश्चित ध्वनि है।

डाॅ.मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर छग ने कहा कि नागरी एक आदर्श लिपि है। देवनागरी का सर्वप्रथम प्रयोग सातवी सदी में गुजरात के जयभट्ट के शिलालेख में पाया गया है। डाॅ.सुरेखा मंत्री, यवतमाळ, महाराष्ट्र ने कहा कि नागरी लिपि के वर्णों की बनावट ही वैज्ञानिक ढंग से हुई है, जो निस्संदेह निर्दोष है। ब्राह्मी लिपि की उत्तराधिकारिणी होने से समस्त आधुनिक भारतीय लिपियों से नागरी की समानता है।

डाॅ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई ने कहा कि लिपिविहीन बोलियों के लिए नागरी लिपि बहुत काम आ सकती है।राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से नागरी अत्यंत उत्तम लिपि है।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डाॅ. प्रभु चौधरी ने कहा कि देवनागरी लिपि भारतीय भाषाओं के मध्य सामंजस्य की भूमिका निभाती आ रही है। इस अवसर पर सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो, नाॅर्वे, बाळासाहेब तोरस्कर, ठाणे, महाराष्ट्र, ज्योति तिवारी, इंदौर, दिलिप चौधरी, नांदेड, दीप्ति शर्मा व विभा पाराशर, भोपाल और प्रभा वीरथरे, गुरूग्राम ने अपने विचार प्रस्तुत किये। गोष्ठी का शुभारंभ ज्योति तिवारी ने सरस्वती वंदना से किया।

डाॅ. प्रभु चौधरी, महासचिव ने स्वागत भाषण दिया। डाॅ.रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने प्रस्तावना में नागरी लिपि की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डाला। डाॅ. रश्मि चौबे के जन्मदिन की स्क्रीन पूर्णिमा कौशिक ने प्रस्तुत की।प्रस्तुत गोष्ठी में डाॅ. रश्मि चौबे को ‘नागरी सम्मान’ से विभूषित किया गया। मंच संचालन पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने किया तथा डाॅ. शिवा लोहारिया, जयपुर ने सभी को धन्यवाद दिया।

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