डीपी सिंह की रचनाएं

न्याय व्यवस्था देश की, बिल्कुल ही है भिन्न
तय उत्तर पहले करें, तदनुसार हल भिन्न
तदनुसार हल भिन्न, लगाते घात कहीं घन
मात्र एक ही लक्ष्य, विविधि विधि विधि का वेधन
न्यायमूर्ति की सोच, चयन की रुग्ण अवस्था
मिलकर कर दी ध्वस्त, देश की न्याय व्यवस्था

–डीपी सिंह

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