डीपी सिंह की रचनाएं

हँसी तो द्रौपदी की कौरवों का बस बहाना था
उन्हें नामो-निशां ही पाण्डु- पुत्रों का मिटाना था
ज़ुबां से क्या कहा था, क्या किया, कैसे किया, छोड़ो
बहाने लाख थे, पर मात्र सिंहासन निशाना था

डीपी सिंह

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