ज़ुबां कड़वी है, मीठी, तो कभी अनमोल मोती है
ये जब मुँह में नहीं होती, तो रिश्तों को सँजोती है
कभी तो चीरती है ये कलेजा तीर, खंजर-सी
सँभाले से न सँभले जब कभी दो गज की होती है
डीपी सिंह
ज़ुबां कड़वी है, मीठी, तो कभी अनमोल मोती है
ये जब मुँह में नहीं होती, तो रिश्तों को सँजोती है
कभी तो चीरती है ये कलेजा तीर, खंजर-सी
सँभाले से न सँभले जब कभी दो गज की होती है
डीपी सिंह