चंद्र किरण की कविता : आतप

।।आतप।।
चंद्र किरण

आतप घन में है धरा,
जलता जग है जान।
बेचैनी अब बढ़ रही,
मनुज रहे अनजान।

पेड़ धरा पर रो रहे,
मनुज करे अभिमान।
आतप से जलती धरा,
मानव अब तो जान।

आतप मन होता तभी,
अपना जाता दूर।
मन कानन झुलसा करे।
करे न कोई पूर।

मांँ की ममता है कहांँ,
आतप मन है आज।
याद हमेशा है गिरह,
देती वह आवाज।‌

प्रिय कहीं जो बिछड़ गए,
झुलसे आतप अंग।
दिल उपवन पतझड़ सहे।
उड़ता सरी पतंग।

चंद्र किरण, कवित्री

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − 11 =