दुर्गेश बाजपेयी की कविता : आकांक्षा

आकांक्षा तुम ही हो ज्वाला सी सघन, तुम में हैं मटमैली कलमें, तुम ही तेज

श्रीराम पुकार शर्मा का निबंध : गोबर संस्कृति

‘गुड़ गोबर करना’ क्या सचमुच ही किसी विशेष वस्तु को नष्ट करने के अर्थ में

वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये (ग़ज़ल) : डॉ लोक सेतिया “तनहा” 

 “तनहा” वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये  झूठ के साथ वो लोग खुद

डीपी सिंह की कुण्डलिया

सामयिक कुण्डलिया लंगोटी में एक ही, ढक लो तन श्रीमान। आह्वान पर चेलियाँ, लीं मन

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया ————– जनता के दुख-दर्द को, खूँटी पर दो टाँग। वोट चोट पर माँग लो,

अर्जुन तितौरिया की कविता : चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की

चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की कौशल्या दशरथ नंदन

डीपी सिंह की कुण्डलिया

पर उपकारी अङ्ग है, कान बहुत ही नेक। आँखें जब कमज़ोर हों, दे ऐनक को

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया ————– विकृत होता है कभी, जब मानव का जीन। फटने लगती है तभी, कहीं-कहीं

राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल का होली काव्य संगम सम्पन्न

प्राइमरी से विश्वविद्यालय तक के विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल के मंच पर काव्यपाठ

डीपी सिंह की कुण्डलिया

*होली है* 🔫🔫🔫🔫🔫🔫 सब कड़वाहट भूली सारी मैल दिलों की धो ली है सब पर