कवि, कहानीकार संतोष श्रीवास्तव ‘सम’ से एक साक्षात्कार

छत्तीसगढ़ के कांकेर में स्थित बादेरभाटा के कवि, कहानीकार : संतोष श्रीवास्तव ‘सम’ सुधी लेखक के अलावा साहित्यिक चिंतक भी हैं ! साहित्य, समाज और जीवन से संबंधित कुछ मुद्दों को लेकर प्रस्तुत है, राजीव कुमार झा के साथ इनकी अंतरंग बातचीत…

प्रश्न : अपने प्रिय लेखकों कवियों के बारे में बताएंँ? और अपनी पढी कुछ उन पुस्तकों के बारे में भी चर्चा करें जिनका आपके मन प्राण पर अमिट प्रभाव पड़ा?

उत्तर : हिंदी साहित्य में वैसे तो अनेक लेखक एवं कवि रहे हैं, जिनकी रचनाएंँ मन को प्रेरित करती हैं। उद्वेलित करती हैं। मैंने पाया है कि ऐसे तमाम विद्वान लेखकों में मुंशी प्रेमचंद जी का नाम कहानी एवं उपन्यास के क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय रहा है। उनकी कहानियांँ मुझे काफी हद तक प्रभावित करती हैंं। साथ ही रविंद्र नाथ टैगोर को भी मैंने पढ़ा है। जिनकी कहानियांँ एवं कविताएंँ अत्यंत प्रेरक हैं। मैथिलीशरण गुप्त एवं रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएंँ राष्ट्रभक्ति के प्रति हमें प्रेरित करती हैं। प्रेमचंद की गोदान, निर्मला रविंद्र नाथ की काबुलीवाला व अन्य कहांनियाँ, उनकी कविता संग्रह गीतांजलि एवं साथ ही स्वामी विवेकानंद की पुस्तक “उठो जागो” मन को काफी अधिक प्रेरित करती हैं। एक अमिट प्रभाव अपना छोड़ती है।

प्रश्न : आलोचना ने समकालीन हिंदी लेखन को काफी प्रभावित किया है। इस बारे में आपकी क्या राय है?

उत्तर : समकालीन हिंदी साहित्य में आलोचना का एक महत्वपूर्ण स्थान है। समकालीन साहित्य में हम पाते हैं कि साहित्य एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानवतावाद के प्रति समर्पित है। इस काल के लेखक एवं कवि आलोचना के माध्यम से अपने तमाम उन विचारों को आम पाठकों तक पहुंँचाते नजर आते हैं, जो आज के परिवेश में अत्यंत आवश्यक महसूस होती है। इसने हिंदी लेखन को एक मूर्त रूप प्रदान किया है, तथा संपूर्ण विश्व को भाईचारे के एक सूत्र में बांँधने का प्रयास किया है।

प्रश्न : लेखन के अलावा अपनी अभिरुचि के अन्य कार्यों के बारे में जानकारी दीजिए?

उत्तर : लेखन के अलावा मेरी अभिरुचि समाज सेवा के प्रति रही है। मैंने समाज के प्रति ऐसे तमाम कार्यों को महत्त्व दिया है, जिससे संपूर्ण समाज को एक प्रगतिशील दिशा मिल सके। मेरे द्वारा एक जनजागरण पत्रिका जागो भारत का संपादन व प्रकाशन भी किया जा रहा है। आज के परिपेक्ष में साक्षरता, पर्यावरण, नशे के विरुद्ध अभियान, नारी चेतना, युवाओं के अंदर जागरण का कार्य जैसे तमाम कार्यों को सतत अंजाम देता रहा हूँ।

प्रश्न : सदियों से हिंदी कविता समाज और संस्कृति को क्या संदेश देती रही है?

उत्तर : सदियों से हिंदी कविता ने समाज और संस्कृति को आध्यात्मिकता के प्रति प्रेरित किया है। मानवता का बखान किया है। एवं शोषण अत्याचार के खिलाफ जागृति पैदा की है। एक नवचेतना जगाने का प्रयास किया है ।एवं देशभक्ति की भावनाओं का प्रसार करते हुए मानवों में अपने देश के प्रति भक्ति का भाव जागृत किया है। संस्कृति के पतन को उजागर करते हुए अपनी संस्कृति के प्रति निष्ठावान बने रहने को आगाह करती है।

प्रश्न : साहित्य की अभिव्यक्ति का दायरा क्या निरंतर विस्तृत रहा है? इस परिपेक्ष में लेखन की चुनौतियों के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए?

उत्तर : साहित्य की अभिव्यक्ति की धारा निरंतर प्रवाहित है यह सर्वथा उचित है। हालांकि लेखन की अनेक चुनौतियांँ आज के परिप्रेक्ष्य में देखने को मिलती हैं। अलग अलग विचारधारा के लेखक कवि अपनी अलग अलग विचारों के तहत साहित्य परोसते होते हैं , लेकिन फिर भी देखा जाए तो सबका हेतु लगभग एक सा होता है।
लेखन के सामने चुनौतियांँ तो बहुत हैं और इसका सामना लगातार किया जा रहा है। लेखनी के माध्यम से सामाजिक परिवेश को प्रस्तुत कर आवश्यक परिवर्तन के प्रति चेतना भी जगाई जा रही हैं। आज ऐसे तमाम लेखक कवि सामने आ रहे हैं जो अपनी भावनाओं को समाज के सामने खुले रुप में व्यक्त करते दिखते हैं।
एक खुलापन भी हम आज के लेखन में पाते हैं। व्यवहारिक पक्ष को काफी हद तक हमें ध्यान में रखना चाहिए और लेखन का उद्देश्य उस पाठक के अंदर प्रेरणा जगाना होना चाहिए।

प्रश्न : आप अपने बचपन घर परिवार माता पिता और पढ़ाई लिखाई इन सब के बारे में बताएं आपके लेखन की ओर प्रवृत्त होने में इस परिवेश की भूमिका को किस रूप में याद करना चाहेंगे

उत्तर : मैं बचपन से ही प्रकृति के प्रति एवं समाज व संस्कृति के प्रति सचेष्ट रहा हूंँ। देशभक्ति की भावना से भी ओतप्रोत रहा हूंँ। जब मैं स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस में स्कूल जाया करता था तो घर पर पहले तिरंगा फहराना शुरू किया था। फिर स्कूल जाता था। आज जब एक शिक्षक हूँ तो भी मैने इस परंपरा को आज तक बनाए रखा है। मेरे परिवार में संस्कारित शैक्षिक वातावरण रहा है। पिताजी शासकीय नौकरी करते थे। माताजी की गृहिणी थी। हम तीन भाई एवं एक बहन हुआ करते थे। अपनी अपनी पढ़ाई के प्रति एवं साथ ही सामाजिक परिवेश में भी हम लोग काफी व्यवहारिक थे। आज मेरी पत्नी भी एक निजी विद्यालय में शिक्षिका है। और समाज के प्रति सेवा का कार्य कर रहीं हैं। मेरी दोनों लड़कियांँ स्वास्थ्य विभाग में अपनी सेवा दे रहीं हैं।

बचपन से कविता लिखने की रूचि मेरे अंदर रही है और मैं कविता, कहानी आदि लिखता रहा हूंँ। मेरे परिवार में भी साहित्यिक वातावरण रहा है। मेरे बड़े भाई साहब जी भी कविता लेखन करते हैं। इस तरह देखा जाए तो मुझे अपने आसपास के वातावरण से लेखन के क्षेत्र में सतत प्रेरणा मिली है।
मेरी प्रकाशित कृतियां- कवितासंग्रह-१)आसमां छोड़ सूरज जब चल देगा
२) तुम प्रतिपल हो।
कहानी संग्रह – वे सौदागर थे।
सम्मान -१) दिनकर साहित्य सम्मान, २) अम्बेडकर सेवा सम्मान, ३) सफल सम्मान,४) साहित्य सेवा सम्मान,वर्धा, ५) साहित्य सृजन सम्मान, आदि विविध सम्मान।

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