सोमरस से कोरोना का ईलाज ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया
जो काम पैसे से नहीं होता सिफारिश से नहीं होता शराब की इक बोतल से
चुनाव अध्यक्ष का ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया
हम शांति पूर्वक घर के अंदर बैठे हुए थे कि तभी बाहर से कुत्तों के
अच्छी सच्ची जनता की नाकाबिल झूठी सरकार
ये सवाल कभी शायद खुद आपने भी अपने आप से किया हो। यूं ये सवाल
ज़िंदगी को फ़नाह कर बैठे ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया
कैसे नादान लोग हैं ज़िंदगी से मौत का खेल खेलते हैं। मौत का कारोबार करते
कौन पहचानता है असली-नकली
जवाहर लाल नेहरू जी के निधन को आज 56 साल हो गये। आज कितने लोग
सत्ता का हम्माम सभी एक समान ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया
हमारे ही देश की नहीं दुनिया भर की आम जनता की तकदीर यही है। उसको
कोरोना ज्ञान का संदेश है ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया
शायद अभी नहीं पहचानोगे समझोगे तभी जानोगे कभी कोरोना की कथा लिखोगे उसका संदेश मानोगे।
मदर्स डे स्पेशल : डॉ. लोक सेतिया की कविता – “माँ के आंसू”
माँ के आंसू कौन समझेगा तेरी उदासी तेरा यहाँ कोई नहीं है उलझनें हैं साथ
समझ नहीं आती लगती खूबसूरत ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया
आपने महाभारत सीरियल देखा या नहीं , कुछ देखते हैं कुछ नहीं देखते हैं जो