श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ की कविता : “शैतान के अपने लगते हो”

शैतान के अपने लगते हो

तुम नजरें तो आसमान पर रखते हो
पर ये क्या एक ठोकर से डरते हो।

जीने का हुनर है अस्ल तालिम
मरने से पहले ही क्यों मरते हो।

हम समंदर पीने का हुनर रखते हैं
एक जाम की क्या बात करते हो।

शक्ल है तुम्हारी आदम जात की
हरकत से शैतान के अपने लगते हो।

माना तुम्हें गुलों से नहीं है उल्फत ‘श्याम’
भला गुलशन को क्योंकर उजाड़ते हो।

श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’*

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