अर्जुन तितौरिया की कविता : आज का कुरुक्षेत्र

*आज का कुरुक्षेत्र*

वो कहते हैं हार मानलो हे अर्जुन
मैं कहता हूं हार, अभी हार मानू तो कैसे?
रणभेरी तो बज उठी, अभी केशव का आना बाकी है,
श्री कृष्ण मुरली वाले का उपदेश सुनाना बाकी है।
अस्त्र शस्त्रों से सजी योद्धाओं की टोली,
अभी कुरुक्षेत्र में भीषण रण का होना बाकी है।
पांडव भी हैं, कौरव भी हैं, पितामह भीष्म का आना बाकी है।
अभी हार और जीत के मध्य, टीस पुरानी बाकी है।
मृत्यु और भय से दूर कहीं, जीत रूपी पुष्पों का हार पहनना बाकी है।
तेरी हुंकार और ललकार तो हो चुकी,
अभी मेरे गांडीवधारी की गांडीव की टंकार का आना बाकी है।

अर्जुन तितौरिया

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