राजीव कुमार झा की कविता : प्यार के दीप

।।प्यार के दीप।।
राजीव कुमार झा

इश्क के आइने में
रात की चुप्पी
सुबह रोशनी हंसती
कितनी दीवारों के
पार आकर
सुकून से सुबह बैठी
गनीमत है
यहां रात की यादों में
फूल महकते
अरी सुंदरी
इसी पल तुम्हें देखा
साजन से बातें
दिल से कहीं करते
तुम्हारे घर पर
इसी पहर में
प्यार के दीप जलते
धूप में झरने
हरियाली में आकर
दिनभर बहते

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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