राजीव कुमार झा की कविता : प्रेम गीत

।।प्रेम गीत।।
राजीव कुमार झा

यहां जिंदगी के अलावा
बाकी सब कुछ छलावा
चाहे अपनी
चाहतों के पास आकर
लोगों को इससे
हर तरफ दूर पाकर
तुम्हारे मन में
इसी तरह अक्सर
उठेगी
जो प्रेम की आहट
ग्रीष्म की धूप से
बाहर
रिमझिम बरसात में
तुम्हें पाकर
भीग जाता मन-प्राण
सबका
शीतवन में छिटकती
धूप
प्रेम के चारों पहर में
अरी प्रिया!
सिर्फ अब यह वक्त
रीता
तुम्हें अपने पास
पाकर
यहां सदा जो मौन
रहता
तुम याद आती हो
मौसम बदल जाता
काश! कोई पास आता
गीत गाता
मानो जिंदगी के
पहाड़ से नीचे
कोई झरना गिरता
कल-कल स्वरों में
नाद करता
प्रेम में विस्तीर्ण
भूमि पर हंसता हुआ
बहता
याद करता
स्नेह के उस कुंड को
सूरज प्रेम से सुबह में
सबके मन को
अक्षय ऊष्मा से
भिगोता
उसी लालिमा से सराबोर
सदा सबका जीवन बना
रहता
यहां चांदनी को देखकर
कोई तुम्हें कहता
तुम कितनी
अब अकेली हो गयी हो
मौन होकर किस व्यथा में
हंस रही हो
जिंदगी के अंधेरे में
रोशनी बनकर
धरती पर प्रेम में
कितने युगों से
सबके पास आकर
फिर भी पगी हो

Rajiv Jha
राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

20 − eight =