“हिन्दी दिवस को अनुष्ठान के रूप में नहीं, उत्सव की तरह मनाया जाना चाहिए”

  • सप्रेम संस्थान द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर कला लेखन में हिन्दी के महत्त्व पर विशेष टेलिफोनिक बातचीत

लखनऊ। हिन्दी सिर्फ एक भाषा ही नहीं, बल्कि एक अभिव्यक्ति है। हिन्दी का व्यक्तित्व वर्णमाला में काफी विशाल है। हिन्दी में ही वह सामर्थ्य है कि संसार की किसी भी बोली और भाषा को ज्यों का त्यों लिखित रूप दे सकती है। अब बात आती है कला साहित्य में लेखन की तो साहित्य में तो बहुत हिन्दी लेखन हुआ और हो भी रहा है। लेकिन कला के क्षेत्र में ख़ास तौर पर दृश्यकला में इसका विशेष अभाव रहा है। अमूमन साहित्यकार, कवि इस विधा में जो भी लेखन किया है वही रहा है कलाकारों की अपेक्षा साहित्यकार का योगदान ज्यादा रहा है।

हालांकि आज कुछ कलाकार कला समीक्षक इस विधा में भी लेखन कार्य कर रहे हैं लेकिन कम है। हिंदी में कला पर पुस्तकें भी कम हैं अंग्रेजी की अपेक्षा। हिन्दी हमें आमजन तक पहुंचाती है। इसीलिए हिन्दी कला लेखन और संवाद कला को आमजन तक पहुंचाने में एक सीमा तक सहायक रहा है। वहीं कला विद्यार्थीयों, अध्येताओं आदि के लिए भी कला इतिहास और समकालीन कला पर हिन्दी पुस्तकें महत्वपूर्ण रहती हैं।

कला विकास के लिए हिन्दी एक उपयोगी भाषा है। हाँ, इस पर और गंभीर स्तर पर काम होना शुभकारी रहेगा। आर्ट क्यूरेटर, कला लेखक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने कहा कि गुरुवार को हिन्दी दिवस के अवसर पर सप्रेम संस्थान और अस्थाना आर्ट फ़ोरम की तरफ से विषय – कला लेखन और आम आदमी तक कला पहुंचाने में हिंदी का महत्व और वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी कला लेखन,समीक्षा में हिंदी का क्या महत्व है ?

पर कुछ कलाकारों, कला लेखकों के विचार संग्रह करने की कोशिश की गयी। यह संग्रह टेलीफोनिक माध्यम से किया गया। जिसमें देश के अनेक हिंदी भाषा में लिखने वाले कला लेखकों, कलाकारों ने अपने विचार साझा किया। मध्यप्रदेश भोपाल से वरिष्ठ लेखक,समीक्षक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय कहते हैं कि उत्सव से हम जीवंत होते हैं जबकि अनुष्ठान से जड़।

हिंदी दिवस अब अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है जबकि उसे उत्सव की तरह मनाया जाना चाहिए ताकि उसके समापन के बाद तुरंत उसके अगली बार आने की राह देखी जाने लगे और उसके मनाए जाने से मिली ऊर्जा से हम निरंतर स्पंदित होते रहें।आज हम हिंदी दिवस रस्म अदायगी के तौर पर मनाते हैं जिसकी स्मृति उसके संपन्न होते ही विस्मृत हो जाती है।

हिंदी हमारे जीवन का अंग है और अंग अभिन्न होता है इसलिए हमें निरंतर अपनी इस अभिन्नता को सहेजना चाहिए।हिंदी निरंतर कैसे विकसित हो और अपना क्षेत्रफल बढ़ाए यह प्रयास करना चाहिए। हिन्दी के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है कला।आज भारतीय कला और वैश्विक कला के आयामों और उनकी नवीनतम स्थितियों के बारे में हिंदी के पाठक प्राय: अनभिज्ञ हैं।

अधिकांश विमर्श अंग्रेज़ी में होते हैं, पुस्तकें अंग्रेज़ी में लिखी जाती हैं,प्रस्तुतिकरण अंग्रेजी में होते हैं और यह एक पीड़ाजनक अनुभव होता है जब हिंदीभाषी विद्वान यह कार्य करते हैं और स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। विशेष रूप से भारतीय कला पर हिंदी में बहुत अल्प प्रामाणिक और स्तरीय पुस्तकें हैं। हम अपने कला इतिहासकारों के नाम भी तब तक नहीं जान पाते जब तक हम अंग्रेज़ी स्रोत नहीं देख लेते।

इसलिए हिंदी दिवस के इस उत्सव पर यह पहिला संकल्प लेना चाहिए कि हम कला पर हिंदी में लिखेंगे,हिंदी में विमर्श करेंगे और हिंदी में ही प्रस्तुतिकरण देंगे। हिंदी बिना ऐसे दृढ़ संकल्प लिए और उन्हें क्रियान्वित किए अपने आपको विश्व पटल पर स्थापित नहीं कर सकेगी। आज हिंदी दिवस मनाने के अनुष्ठान को हिंदी उत्सव में रूपांतरित करने की आवश्यकता है।

नई दिल्ली से कला लेखक पंकज तिवारी ने कहा कि भारतीय कलाकार हमेशा से साधना में लीन रहते हुए कृतियों के निर्माण में अपनी मजबूत भागीदारी करते रहे हैं। सृजन में प्रयोग भी खूब होते रहे हैं जिनके कृतियों की चर्चा भी खूब हुई पर अंग्रेजी में। हिंदी में भी हुई है पर नाम मात्र की। कला में डूब कर लिखा गया हो ऐसा नहीं रहा। हिंदी में कला लेखन की स्थिति दयनीय रही है पर पिछले कुछ वर्षों में गौर करें तो खुश होने को जी करता है, खूब-खूब लिखा जा रहा है और अच्छी बात है कि अब प्रदर्शनियों में हिंदी पढ़ कर हिंदी वाले दर्शक और खरीददार भी बढ़ रहे हैं।

कैटलाॅग अंग्रेजी में होगा तो ही कृतियां बिकेंगी, कलाकार अब इस भ्रम से बाहर निकल रहा है और गैलरियां भी अपने को हिंदी के हिसाब से दिखाने का प्रयास कर रहीं हैं। कहा जा सकता है कि हिंदी अंग्रेजी दोनों को साधते हुए आगे बढ़ रहीं हैं जो आने वाले समय में कला, कलाकार, दर्शक, खरीददार और कलादीर्घाओं सभी के बेहतरी का संकेत है।

राजस्थान जयपुर से विनय शर्मा ने कहा कि कला लेखन में हिंदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, या यूं कहें हिंदी में कला लेखन से सभी कलाएं समृद्ध हुई है। यह सत्य है की मातृभाषा में अपने भावों की अभिव्यक्ति देना सहज होता है और कलाएं उसी से पनपती है, हिंदी में कला लेखन विश्व एवं भारत की कला को जन जन तक पहुंचाया है। हिंदी आत्मीय भाव प्रधान भाषा है इस भाषा में एक विशेष प्रकार की लय है जो मनुष्य को भाव विभोर कर देती है।

हिंदी सब भाषाओं की आत्मा है। मुझे गर्व है कि मेरी मातृभाषा हिंदी है जिसके माध्यम से मैं अपनी भावनाओं का संप्रेषण जन सामान्य के सामने सहज भाव से कर पाता हूं, और अपनी भावनाओं को संप्रेषित कर पाता हूं। उत्तर प्रदेश लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसमें अन्य भाषाओं को साथ लेकर चलने की शक्ति है जो अभिव्यक्ति को सहज तो बना ही देती है साथ ही व्यापकता प्रदान करती है।

मध्यप्रदेश भोपाल से वरिष्ठ चित्रकार, कला लेखक अखिलेश ने कहा कि वर्तमान ही क्यों आज़ादी के बाद से ही हिन्दी में कला लेखन या समीक्षा लगभग नहीं के बराबर ही हुई है। कला रिपोर्टिंग की स्तिथि भी बहुत ही दयनीय रही है। इस दिशा में कोई पुख़्ता काम नहीं हुआ न ही कोई ऐसा व्यक्ति सामने आया जिसकी रुचि कला समीक्षा में हो और वह अपनी प्रतिभा, रुचि और विशेषज्ञता से कला लेखन करे।

जो भी बहुत थोड़ा सा सार्थक लेखन हुआ है वो कलाकारों द्वारा किया गया है। उसके परिणाम भी बहुत हौंसला बढ़ाने वाले नहीं हैं। ज़्यादातर कला लेखन निराश ही करता है। उत्तर प्रदेश वाराणसी से राजेश कुमार मूर्तिकार ने कहा कि हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई – एक औपचारिक वाक्य नहीं तो और क्या है! सोशल मीडिया पर भी अनेक प्रकार से हिंदी दिवस और हिंदी की महिमा को परिभाषित किया जाता है और भविष्य में इसके प्रयोग पर बल दिया जाता है।

परन्तु दूसरे ही दिन अपने ही घर में बच्चों को गुड मॉर्निंग कह कर समृद्ध समझने की भूल कर बैठते हैं। हालांकि हमारी भाषा हिंदी अपने आप में इतनी समृद्ध भाषा है ,फिर भी अपनी विपन्न सोच के कारण उपर नहीं उठ पाते। कला लेखन की बात हो या समीक्षा लेखन की आंग्ल भाषा को ज्यादा महत्व मिलता है, हालांकि हालात अब बदलते नजर आ रहे हैं, नवांकुर लेखकों ने हिंदी में कला लेखन और समीक्षा करने का साहस तो जुटाया है,उसे उचित प्रोत्साहन और महत्व देने की जरूरत है।

लखनऊ के भूपेंद्र अस्थाना ने कहा कि आज उत्तर भारत में हिंदी क्षेत्रों में गंभीर कला चिंतन का सर्वथा अभाव नज़र आता है। जरूरत इस बात की है कि यह कला चिंतन आम भाषा में सरलतम रूप में लोगों तक पहुंचे। अधिक से अधिक लोग इससे जुड़े । इसके लिए जो सबसे प्रभावशाली भाषा हो सकती है वह हिंदी ही है। मेरी अपेक्षा है कि तमाम पत्र-पत्रिकाओं में अंग्रेजी की भांति ही गंभीर लेखन हिंदी में भी उपस्थित हो तभी हिंदी की स्तरीयता बढ़ेगी।

लखनऊ के मूर्तिकार एवं कला शिक्षक गिरीश पाण्डेय कहते हैं कि कला भाव की अभिव्यक्ति एवं एक भाषा भी है। ये तो सभी जानते हैं कि अभिव्यक्ति के कई माध्यम हैं । जिसमें रंग,रेखा,ध्वनि,शब्द,अंग संचालन (अभिनय) इत्यादि में की जाती है। अभिव्यक्ति के लिए शब्द एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। भाषा भी ध्वनि से शब्द रूप में भाव को ही अभिव्यक्त करती है। विश्व मे अनेक भाषाएँ हैं। परंतु किसी भाषा में समस्त ध्वनियों के लिए शब्द नहीं मिल पाते हैं।

हिन्दी एक ऐसी भाषा है, जिसमें हर एक प्रकार ध्वनि का उच्चारण के लिए अक्षर एवं शब्द हैं। विश्व मे सबसे समृद्ध कोई भाषा है, तो वह हिन्दी ही है। कहते हैं की ब्रह्मांड ध्वनि ॐ के ध्वनि जैसा है। ‘शब्द को ब्रह्म’ कहा गया है । और यह हिन्दी भाषा मे ही सुनने को मिलते हैं। अतः हिन्दी सर्वश्रेष्ठ भाषा है । मेरा मानना है कि कला को समझने और समझाने के लिए हिन्दी से उपयुक्त कोई भाषा नहीं हो सकती।

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