डीपी सिंह की रचना : भारत के भविष्य की बात

।।भारत के भविष्य की बात।।
डीपी सिंह

मिथ्याचारी, भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी, सब साथ खड़े
चौकीदार एक के पीछे झुण्ड बनाकर सभी पड़े
जिनका देख चुके हैं क़िस्सा लूट-खसोट महारत का
उन हाथों में कैसे दे दें फिर भविष्य हम भारत का

संसद के बाहर सन्तों पर, चलवाई थी जब गोली
कारसेवकों के लोहू से खेली थी जम कर होली
जिनका तो इतिहास रहा है केवल क़त्ल-ओ-गारत का
उन हाथों में कैसे दे दें फिर भविष्य हम भारत का

सीमा पर हर रोज हमारे सैनिक मारे जाते थे
बर्बरता से उन शेरों के शीश उतारे जाते थे
जो उत्तर तक दे न सका दुश्मन की किसी हिमाकत का
उन हाथों में कैसे दे दें फिर भविष्य हम भारत का

केवल चीनी चमचा बनकर रहना जिनको आता है
देहाती औरत बनना ही जिनके मन को भाता है
फालूदा बनवाते थे जो सौ करोड़ की इज्जत का
उन हाथों में कैसे दे दें फिर भविष्य हम भारत का

क्रिसमस, ईद और इफ्तारी पर होता है गर्व जिन्हें
कभी न भाये होली और दिवाली जैसे पर्व जिन्हें
जहर बाँटते रहते हैं जो लेकर नाम मुहब्बत का
उन हाथों में कैसे दे दें फिर भविष्य हम भारत का

कच्चातिवु-अक्साईचिन, आधा कश्मीर डकार गये
सेना की हर इक जय को जो कूटनीति में हार गये
देश भरोसा कैसे कर ले उनसे भला हिफाजत का
उन हाथों में कैसे दे दें फिर भविष्य हम भारत का

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